For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ट्रेन की बोगी में पाँच मुरझाये चेहरे बाक़ी सवारियों के वार्तालाप को सुनते हुए बातें समझने की कोशिश कर रहे थे। किसान की जवान बेटी बुरी नज़रों से बचने के लिए अपने शरीर को किसी तरह ढांकने की कोशिश कर रही थी। बाक़ी दोनों बच्चे सवारियों की खाने-पीने की वस्तुओं को टकटकी लगाये देख रहे थे। उनकी मां उन्हें सुलाने की कोशिश में नाकाम हो रही थी।
"जब से यह ठेका मिला है, पैसा ही पैसा बरस रहा है, वरना पिछले धंधे में तो बरबाद हो गया था!" एक सवारी ने संतोष की सांस लेते हुए अपने साथी से कहा।
"मेरे बाप ने तो मुझे खेती-किसानी में फंसा दिया, ज़िन्दगी बरसात भरोसे हो गई! पैसा जुड़ ही नहीं पाता!" मित्र ने अपना अनुभव सुनाया।
"भैया, जिसके पास न पैसा बचा हो, न फसल बच पायी, उसकी ज़िन्दगी किसके भरोसे? " किसान बीच में ही बोल पड़ा,"क्यों भैया शहर में हमें मज़दूरी का कोई काम दिला दोगे क्या?"
दोनों सवारियों ने उस किसान और उसके परिवार पर ध्यान केंद्रित किया।
"लगता है किसी सूखा पीड़ित गांव से हो! लेकिन हो मालदार, कहो तो काम से लगवा दें शहर में!" पहले वाली सवारी ने मित्र को कोहनी मारकर कहा।
"तुम्हें पैसों की बरसात मुबारक भैया, हम तो इज़्ज़त के ही मालदार हैं, मजूरी करके पेट पाल लेंगे!" किसान की पत्नी ने तीनों बच्चों को सीट से उठाते हुए कहा और पति के साथ चली गई दूसरी बोगी में।

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 467

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2016 at 4:53am
मेरी इस लघुकथा को आप सभी ने सराहा, बहुत ख़ुशी हासिल हुई। समीक्षात्मक टिप्पणियों द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय तेज वीर सिंह जी,आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीया नीता कसार जी व आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी।
Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:31pm
बढ़िया बहुत बढ़िया भाई।।बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on March 8, 2016 at 9:38pm

हार्दिक बधाई शेख उस्मानी जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:42pm

"तुम्हें पैसों की बरसात मुबारक भैया, हम तो इज़्ज़त के ही मालदार हैं, मजूरी करके पेट पाल लेंगे!" किसान की पत्नी ने तीनों बच्चों को सीट से उठाते हुए कहा और पति के साथ चली गई दूसरी बोगी में।   .... सही बात है पैसा इज्ज़त से बढ़ कर नहीं है। स्वाभिमान से जीने का सन्देश देती इस लघु कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी साहिब। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:30pm

लघु कथा में निहित सन्देश सार्थक है इज्जतदार इंसान नजर और मंशा भांप लेता है बहुत खूब .हार्दिक बधाई आ० शेख़ शहज़ाद जी .

Comment by Nita Kasar on March 8, 2016 at 2:44pm
बरसात के चलते आई तकलीफ़ ख़त्म हो जायेगी पर इज़्ज़त ज़्यादा मायने रखती है ।सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद०शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।
Comment by Rahila on March 8, 2016 at 11:11am
बहुत अच्छी रचना हुई आदरणीय उस्मानी जी! वाकई गरीब के पास एक इज्जत के कुछ बचा भी नहीं । बहुत बधाई आपको रचना के लिये ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
2 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service