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आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है / गजल

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है
इक आस शगुन बन के मेरे दिल से उठी है

ये रात जुदाई की है लम्बी मेरे महबूब
हर एक घड़ी इसकी मेरी जाँ पे बनी है

इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़
ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है

आँखें मेरी खुशीयों के कई जाम उंडले साहिब
बस फिक्र है इतनी ये गली तेरी गली है

शबनम ने भिगोया है समाँ चारो तरफ से
बाँहों में जो महबूब के इक रात मिली है

बातों में वफ़ादारी की छलका दे शराबें
साक़ी तेरी बोली में बड़ी जादू गरी है


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 10:57am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कोटि कोटि बधाई l

Comment by kanta roy on January 24, 2016 at 3:11pm
प्रस्तुत गजल पर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आदरणीय तेजवीर जी और आदरणीय शहज़ाद जी हृदयतल से आभार करती हूँ । सादर
Comment by kanta roy on January 24, 2016 at 3:04pm
आपकी प्रतिक्रिया में मार्गदर्शन पाकर मै अभिभूत हुई हूँ आदरणीय समर कबीर जी ।
जहाँ तक इस गजल लेखन की बात हैै तो मै यहाँ आपको बताना चाहूँगी की मै गजल तकनीक से बिलकुल अनजान हूँ ।
इस गजल को मैने गाते हुए लिखे है इसलिए काफिया और रदीफ का ध्यान रखते हुए मैने इसे लिख लिया है । गजल की उन्नीस बहरों में यह कहाँ फिट बैठती है इसका आकलन आप सब वरिष्ठ जनों के सुपुर्द है ।
मै आपके मार्गदर्शन तहत इसे सुधारने की कोशिश करती हूँ अभी । सादर नमन ।
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:50pm
एक बात और ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे आपने ?
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 2:48pm
मोहतरमा कांता रॉय जी आदाब,बहुत अच्छे,बढ़िया ग़ज़ल,बधाई स्वीकार करें|
तीसरे शैर के ऊला मिसरे में 'में'की जगह 'पे'करलें,
चोथे शैर के ऊला मिसरे में 'साहिब'हटा दें |
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 24, 2016 at 1:11pm
वाााह..बहुत ही जज़्बाती अश'आर के साथ लफ़्ज़ों को पिरोया है ख़ूबसूरत ग़ज़ल में...
//
इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़
ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है//... तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद इस पेशकश पर मोहतरमा कान्ता राय साहिबा।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 24, 2016 at 12:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कांता रॉय जी!बेहद खूबसूरत गज़ल!आपको तो  तो हर कला में महारत हांसिल है!

बातों में वफ़ादारी की छलका दे शराबें
साक़ी तेरी बोली में बड़ी जादू गरी है

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