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वतन में रोग हैं कई दवा ज़रूरी है...............ग़ज़ल इस्लाह के लिए

1222 1212 12 1222

वतन में रोग हैं कई दवा ज़रूरी है।
चलन हो प्रीत का नई फ़िज़ा ज़रूरी है।।

ख़ुदा औ ईश का ये फर्क बस भरम ही है।
ये सच है तू सभी से ये बता ज़रूरी है।।

कहीं जो प्यार हो मिला किसी को जबरन तो।
मुझे भी वो कथा ज़रा सुना ज़रूरी है।।

दिलों की डोरियाँ तो त्याग ही से जुड़ती हैं।
दिलों की नफ़रतें अमाँ मिटा ज़रूरी है।।

घना अँधेरा आसमान पर जो छाया है।
दिया-ए-इश्क़ सबके दर जला ज़रूरी है।।

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 18, 2016 at 10:27pm
आदरणीय फूल सिंह सर सादर धन्यवाद
Comment by PHOOL SINGH on January 18, 2016 at 2:42pm

अति सुंदर रचना आपको बहुत  बहुत बधाई स्वीकार हो

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2016 at 10:58pm
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, सादर धन्यवाद। तारीफें और सुझाव मेरे लिए आवश्यक खुराक हैं।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2016 at 10:57pm
आदरणीय नीलेश सर सुझाव के अनुरूप परिमार्जन किया जायेगा, सादर धन्यवाद
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 17, 2016 at 10:55pm

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय पंकज साहब, दाद कुबूल करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 17, 2016 at 7:30pm

ख़ुदा औ ईश का ये फर्क बस भरम ही है।
ये सच है तू सभी से ये बता ज़रूरी है।।
इस शेर से ये भरम हो रहा है कि ई काफ़िया और है रदीफ़ पर ग़ज़ल कही गयी है ..इससे बचें ..
जबरन शब्द हल्का लग रहा है ..रिप्लेस कीजिये... सुंदर प्रयास के लिए बधाई 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2016 at 4:22pm
सादर आभार आदरनीय फूल सिंह सर
Comment by PHOOL SINGH on January 15, 2016 at 10:07am

बहुत ही सुन्दर, आप बहुत बहुत बधाई

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 14, 2016 at 10:35pm
आदरणीय तेजवीर सर, हृदय की असीम गहराइयों से सादर प्रणाम प्रेषित है, स्वीकार करें।
Comment by TEJ VEER SINGH on January 14, 2016 at 9:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी!इतनी बेहतरीन गज़ल कोई लिखे तो तारीफ़ करना भी ज़रूरी है!लाज़वाब गज़ल!

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