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2122 2122 2122 212
कामना आ ओ करें ऐसी जहाँ में रीत हो!
भूल जायें भेद सब नव वर्ष में बस प्रीत हो!!
पुष्प मुकुलित हों प्रिये आये मधुप लेकर नवल
रसभरी मधु-मालती को सिक्त करता गीत हो।
ज्योत्सना ऐसी खिलेअब रे खिले जन-मन मृदुल
हों सभी उन्मुक्त मन फिरअब नहीं कुछ भीत हो।
पी अमर रस पीक जब टेरे खड़ा फिर रे पिकी
छेड़ती हो धुन अमर गुंजित जहाँ हो जीत हो।
हों नियति के सब सभासद रुख लिए अनुकूल ही
हो निशा का अंत फूटे रोशनी नव नीत हो।
चंप-लतिका फेरती हो शीश पर आशीष -कर
भाव हो अनुराग का नीरज-नयन अस्फीत हो।
सौम्य-सी महिमा उतरकर फिर गगन से देखिये
आरती हो कर रही प्रिय मधु-मनन संगीत हो।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on January 3, 2016 at 3:57pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी,मान देने के लिए आपका आभार।
Comment by Manan Kumar singh on January 3, 2016 at 3:56pm
जनाब समर कबीरजी,तहे दिल से शुक्रिया कबूल फरमायें।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2016 at 10:50am

आदरणीय मनन जी ..मनोहारी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक  बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on January 2, 2016 at 3:29pm
जनाब मनन कुमार जी आदाब,इस भावपुर्ण ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें |
Comment by Manan Kumar singh on January 2, 2016 at 1:04pm
आदरणीय शहजाद उस्मानी जी,बहुत बहुत आभार आपका एवं आपको सपरिवार नव वर्ष की मंगलकामनाएं।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 2, 2016 at 9:09am
बहुत ग़ज़ब की प्रस्तुति आदरणीय मनन कुमार सिंह जी ।तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको नववर्ष की ।

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