For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले--(ग़ज़ल)--मिथिलेश वामनकर

1222—1222—1222—1222

 

नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले

जमीं पर तुम जमा लेना सलीके से कदम अपने

 

फलक को चाँद भी रौशन करे खुद के उजालों से

मगर वो दाग रखता है हमेशा पास में अपने

 

अगर लफ्जों की ज्यादा पत्तियां बिखरी हुई होगी

तो मतलब के समर हमको दिखाई दे नहीं सकते

 

मुहब्बत के लिए भटका किये जब दर-ब-दर यारो

तो सीधे रास्ते पे ला के छोड़ा है मुहब्बत ने

 

अगर भ्रम है हमेशा भीड़ केवल सत्य कहती है

यकीनन आप दुनिया को जरा सा भी नहीं समझे

 

भरोसा वो परिन्दा है लिए जो आस गाता है

अंधेरों में उजालों की, सहर से भी बहुत पहले

 

अकेले रोज़ रहकर इस अकेलेपन को जीता है

फतह इससे बड़ी कुछ और हो तो आप ही कहिये

 

सुना है फिर मनुज अवतार में भगवान् आए हैं

सभी से रोज मिलते हैं इसी उम्मीद में हँस के

 

हमे आज़ाद होने की हमेशा लालसा लेकिन

न जाने क्यों स्वयं के बन्धनों से हम रहे चिपके

 

खुदा ने भूल जाने की अजब दौलत तो बख्शी हैं

मगर फिर भी सभी बस याद करने में लगे रहते

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 12:01pm

आदरणीया राजेश दीदी, मात्रिक काफिया के साथ गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल का पहला प्रयास है दीदी. इन दिनों कुछ अलग के अभ्यास के क्रम में यह ग़ज़ल हुई है. यह अवश्य है कि तुकांतता के प्रति मेरा मोह और रदीफ़ से आने वाला सौन्दर्य का उपासक होना मुझे ऐसे प्रयोगों के लिए अधिक प्रेरित नहीं करता मगर इस विशिष्ट विधा के इन आयामों पर भी अभ्यास आवश्यक है बस यही मानकर यह ग़ज़ल कही है. आपने बिलकुल सही कहा तुकांत-प्रेमी के लिए ये साहसिक कदम ही है, बड़ी हिम्मत लगी है इसे पोस्ट करने में. आपको ग़ज़ल पसंद आई ये जानकार आश्वस्त हुआ हूँ.  इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 11:49am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 4, 2015 at 11:34am

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल वो भी मात्रिक काफिया  के  साथ!!! शायद  आपकी पहली बार पढ़ रही हूँ बड़ी ख़ूबसूरती से मकते तक निभा ले गए मिथिलेश भैया इस साहसिक कदम की सराहना करते हुए शेर दर शेर दाद कुबूलें सभी अशआर बेहतरीन हुए हैं |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2015 at 11:28am

अगर लफ्जों की ज्यादा पत्तियां बिखरी हुई होगी
तो मतलब के समर हमको दिखाई दे नहीं सकते... क्या बात है!

आ० भाई मिथिलेश जी इस बोलती ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 3:35am
खुदा ने भूल जाने की अजब दौलत तो बख्शी हैं
मगर फिर भी सभी बस याद रखने में लगे रहते

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 12:01am

फलक को चाँद भी रौशन करे केवल उजालों से

मगर वो दाग रखता है हमेशा पास में अपने


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 12:00am

आदरणीय सुनील जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 3, 2015 at 11:59pm

आदरणीय मनोज भाई इस प्रयास के मुखर अनुमोदन, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

Comment by shree suneel on November 3, 2015 at 10:49pm
अगर लफ्जों की ज्यादा पत्तियां बिखरी हुई होगी
तो मतलब के समर हमको दिखाई दे नहीं सकते... क्या बात है! सही फरमाया आपने. कई अशआर ख़ूबसूरत हुए हैं आदरणीय. बधाई आपको इस प्रस्तुति पर.
Comment by मनोज अहसास on November 3, 2015 at 10:36pm
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई सर
इस तरह के प्रयोग हमारे जैसे लोगों के लिए बहुत लाभकारी है
बहुत बहुत धन्यवाद सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service