For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल
2122 2122 122
जब से'मैं बातें बनाने लगा हूँ,
मैं समझ में खूब आने लगा हूँ।
गालियाँ खायी बयाँ की हकीकत,
झूठ कह अब उनको' भाने लगा हूँ।
आरजू थी वे बुला लेते कभी,
मैं अभी उनके ठिकाने लगा हूँ।
तंग था मैं तंगदिल से निभाते,
ठाँव अब दिल में बनाने लगा हूँ।
तर्ज़ भी तब्दील होगी अभी तो,
बात से अब मैं रिझाने लगा हूँ।
गुत्थियाँ उलझी पड़ी थीं कभी की,
हौले'-से बातें बुझाने लगा हूँ।
हो रहा मैं हूँ अदीबो-मुकम्मिल,
उनके' मन का गीत गाने लगा हूँ।
छप गये पर्चे बहुत अब तलक हैं ,
घूम कर मैं अब लुटाने लगा हूँ।
हो गया हासिल समझ ताज अब तो
ताज को लोरी सुनाने लगा हूँ।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on November 8, 2015 at 9:17am
आ.राजेश कुमारीजी,आपकी चिंता वाजिब है।शेर बे बहर हो तो उसे काबू में किया जा सकता है,पर उसके बे मतलब होने पर बात बेमतलब वाली हो जाती है।स्पष्ट है कि ताज सम्मान/पुरस्कार की ओर इंगित करता है और आज सम्मान की दशा विदित है।ताज सत्ता का प्रतिक है और के ताजदार(पुरस्कार प्राप्त)लीग क्या सत्ता को लोरी नहीं सुना रहे;कुछ पक्ष को,कुछ विपक्ष को।पक्ष-विपक्ष का पाला तो सियासत में बदलता रहता है।हाँ भाषा की भंगिमा भावों व्यक्त करती है,भंगिमा को बाधित तो नहीं कर सकते न।वैसा होने पर बात अखर ही जाती है,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on November 3, 2015 at 10:12pm
आदरणीय गिरिराज भाई,प्रेरणासे पूर्ण आपके स्नेह सिक्त शब्द मेरे लिए सम्बल हैं;आपका बहुत बहुत आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2015 at 8:05pm

आ० मनन कुमार जी ,प्रयास अच्छा  है किन्तु कुछ मिसरे बेबह्र हो रहे हैं जैसे ---

आरजू थी वे बुला लेते कभी

रुख भी तब्दील होगा, मानिये

हो गया हासिल समझ ताज अब तो
ताज को लोरी सुनाने लगा हूँ।------इसका भाव समझ  नहीं  पा रही हूँ ....ताज को लोरियाँ सुनाकर सुलाना  है क्या ?    :-))))

वैसे मनन  जी इस बह्र  का नाम क्या है ? मैं  समझ  नहीं  पा रही हूँ . आपको  हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2015 at 6:19pm

आदरणीय मनन भाई , गज़ल अच्छी कही है , दिली बधाइयाँ आपको । बाक़ी आदरणीय रवि भाई कह ही चुके हैं , और आपने मिसरे को सुधार भी लिया है । हार्दिक बधाई आपको ।

Comment by Manan Kumar singh on November 2, 2015 at 8:26pm
हाँ आमोद जी,आप क्या इंगित करना चाहते हैं वह अस्पष्ट है।कृपया विषयवस्तु पर केंद्रित हों।
Comment by Manan Kumar singh on November 2, 2015 at 8:24pm
आदरणीय मिथिलेश जी,धन्यवाद आपको।
Comment by Manan Kumar singh on November 2, 2015 at 8:23pm
आदरणीय रवि जी,आपने गजल पर गौर किया,त्रुटि इंगित भी की,आभार आपका।वाकई 'नाम के' के 212 रुक्न में है,ध्यान नहीं गया था।पुनः आभार आपका,सादर।
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 2, 2015 at 2:55pm
रही बहर की बात तो गुरुजन आप को जरूर बतायेगे
Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 2, 2015 at 2:54pm
सर आप के प्रयाश का सादर नमन सर गजल में जो भाव डाले बहुत सुन्दर है पर बहर के कारण आप कह नही पाये बात यह है की यह बहर आप के भाव में सेट नही हो रही अतः इन्ही शब्दों को इन्ही भावों को आप फिर बुनने की कोशिस करे यक़ीनन आप बहुत सुन्दर गजल लिखेगे सादर नAमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 2:47pm

आदरणीय मनन जी इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service