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बिट्टू वाली नाव- (लघु कथा)

'बिट्टू वाली नाव'- (लघु कथा)

तीनों में से सिर्फ बिट्टू की नाव ही तैर पायी।दोनों बहनें फिर पीछे रह गयीं थीं। रह रह कर पल्लवी को नदी में अपनी और छोटी बहन की डूबती नावों का दृश्य याद आ रहा था।
बेचैन हो कर वह अपनी माँ से पूछ ही बैठी-"हमारी ज़िद पर इतने दिनों के बाद दादाजी ने हमारे लिए नावें बनायीं थीं। ऐसा क्यों मम्मी कि केवल बिट्टू की ही नाव सही तरीके से बनी और वह अच्छे से तैरती रही ?"
शिल्पा बेचारी बच्चों से क्या कह पाती, लेकिन भावुक होकर दोनों बेटियों के सिर पर हाथ फेरते समय उसके मुँह से धीरे से यह निकल ही गया -"इकलौता पोता है न वह !"

मौलिक व अप्रकाशित
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 7:30am
मेरी इस लघुकथा पर समय देकर हौसला अफजाई के लिए सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय पाठकगण व सुधीजन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 11:38pm
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Rajesh Kumari जी इस रचना पर समय देते हुए प्रोत्साहक टिप्पणी करने के लिए।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 22, 2015 at 8:15pm

एक  ऐसा प्रश्न जो सीधा समाज से है बालिकाओं की नाव क्यूँ नहीं तैरती ...वाह  नाव का बेहतरीन बिम्ब लेकर लघु कथा बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह छोड़ती है जिसका उत्तर हम सब के ही पास है |बहुत- बहुत बधाई इस सार्थक लघु कथा के लिए आ० शेख़ शाहजाद उस्मानी जी|  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:39pm
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Om Prakash Kshatri जी अवलोकन करने व प्रोत्साहन देने के लिए।
Comment by Omprakash Kshatriya on September 22, 2015 at 9:10am
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:58am
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद Tej Veer Singh जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2015 at 8:40pm

पञ्च लाइन  ने कथा  को हाथों पर उठा लिया ,  वाह

Comment by TEJ VEER SINGH on September 21, 2015 at 11:45am

हार्दिक बधाई शेख उस्मानी   जी !बेहद खूबसूरत लघुकथा!बहुत गम्भीर मसला उठाया है आपने इस लघुकथा के जरिये!लडकियों के प्रति समाजिक उपेक्षा का सजीव चित्रण !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:05pm

इस लघुकथा के लिए दाद कुबूल करें शहज़ाद साहब


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 20, 2015 at 8:36pm

इस विषय पर बहुत लघुकथाएं लिखी गई है लेकिन आपने जिस सधे ढंग से इस मर्म को अभिव्यक्त किया है, उसने इस लघुकथा को एक नई उंचाई दी है. निसंदेह यह एक सफल और पाठक को गहरे तक प्रभावित करने वाली लघुकथा है. इस शानदार प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई आपको 

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