For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मसरूफ है दुआ करने-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1212--- 1122---1212---22

 

जरा खंरोच जो आई लगे सदा करने

कलम जो धड़ से है, जाएँ कहाँ दवा करने

 

उसे भरम है अदालत से फैसला होगा

मुआमले को लगे वो रफा-दफा करने

 

लहू से आज नहा के जो लौट आया है  

गया था शख्स शरीफों का घर पता करने

 

वो एक आस लगाए इधर उधर ताके

शरीफ भीड़ लगी है खुदा-खुदा करने

 

हुआ है अब्र का भी हाल घर के नल जैसा

जो पानी मांग लो लगता है ये हवा करने

 

हुई है बेटियां मसरूफ आज दफ्तर में

घरों में माएं भी मसरूफ है दुआ करने

 

वो एक बार गरीबों का भाग दे लेते

लगे जो दौलतों से दौलतें गुना करने

 

हुबाब, जिंदगी ‘मिथिलेश’ तिश्नगी, सपने

ये खातमे के लिए है,  नहीं जमा करने  

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 1151

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी, ये ग़ज़ल सचमुच हटकर है। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल कीजिए।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 2:07pm

आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. 'आब' की जगह 'पानी' का मार्गदर्शन बिलकुल सही है. नल के साथ पानी शब्द का सम्बन्ध ज्यादा प्रभावी होगा. आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार करता हूँ. ग़ज़ल की सराहना, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर नमन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2015 at 11:57am

लहू से आज नहा के जो लौट आया है  

गया था शख्स शरीफों का घर पता करने

बहुत खूब ! 

कई शेर कमाल हुए हैं, आदरणीय मिथिलेश भाईजी .

नल वाले शेर में आब शब्द की जगह पानी का उपयोग हुआ होत अतो यह बड़ा ही मारक बन पड़ता.

कारण ? कुछ शब्द अधिक प्रभावी होते हैं. 

हार्दिक शुभेच्छाएँ 




सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 3:23am

आदरणीय शिज्जु भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 9, 2015 at 3:22am

आदरणीय समर कबीर जी, मिसरे के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार. मार्गदर्शन के लिए पुनः आपका बहुत बहुत आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2015 at 10:37pm
वाह मिथिलेश जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फ़रमायें
Comment by Samar kabeer on September 8, 2015 at 10:21pm
सही है,बहुत ख़ूब,मैं यही मिसरा कहना चाहता था ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:28pm
आदरणीय santlal जी ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा कहना सार्थक हो गया। आपने मेरा पसंदीदा शेर कोट किया है। आपका हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 8, 2015 at 7:26pm
आदरणीय राहुल भाई जी हार्दिक आभार
Comment by Santlal Karun on September 8, 2015 at 7:20pm

आदरणीय वामनकर जी,

व्यापक संवेदनाओं को उकेरती --

"हुई है बेटियां मसरूफ आज दफ्तर में

घरों में माएं भी मसरूफ है दुआ करने"

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service