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ग़ज़ल : उनकी आँखों में झील सा कुछ है

बह्र : २१२२ १२१२ २२

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उनकी आँखों में झील सा कुछ है

बाकी आँखों में चील सा कुछ है

 

सुन्न पड़ता है अंग अंग मेरा

उनके हाथों में ईल सा कुछ है

 

फैसले ख़ुद-ब-ख़ुद बदलते हैं

उनका चेहरा अपील सा कुछ है

 

हार जाते हैं लोग दिल अकसर

हुस्न उनका दलील सा कुछ है

 

ज्यूँ अँधेरा हुआ, हुईं रोशन

उनकी यादों में रील सा कुछ है

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 9:29am

उनकी आँखों में झील सा कुछ है बाकी आँखों में चील सा कुछ है........ वाह !!!!!!!!!! क्या खूब कही है आपने आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी ..... बधाई !!!

Comment by MAHIMA SHREE on August 24, 2015 at 9:00pm

अच्छी ग़ज़ल है  बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 23, 2015 at 11:05pm

हमेशा की तरह एक लाजवाब ग़ज़ल ... बस वाह वाह वाह 

Comment by Samar kabeer on August 23, 2015 at 10:54pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 23, 2015 at 4:02pm

शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायण जी। मत्ले में दो अर्थ एक साथ भरने की कोशिश की है। पहला अर्थ : नायिका कहती है कि मेरे प्रियतम की आँखों में झील सा कुछ है और बाकी मर्दों की आँखों में चील सा कुछ है। दूसरा अर्थ नायक कहता है कि उसकी नायिका की आँखों में झील सा कुछ है और नायिका को देखने वालों की आँखों में चील सा कुछ है।

उम्मीद है अर्थ स्पष्ट हो गए होंगे। सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 23, 2015 at 11:07am

आ० धर्मेन्द्र जी

आपने अच्छी गजल कही पर मतले का सानी कुछ स्पष्ट नहीं लगा . आप पथ प्रशस्त करें , सादर .

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