For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे(तरही ग़ज़ल 'राज')

चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे

तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे  

 

काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक 

होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे

 

दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर

प्यार का अपने वो  इजहार किया करते थे

 

कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब   

नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे

 

एक हम थे  जो जमाने  की नजर से डरकर

जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे 

 

आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर

चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे  

 ------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 921

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 25, 2015 at 9:11am

वाह !!!! क्या सुंदर गजल हुई है ये । चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे......... बहुत खूब कहा है आपने ..... वो लोग जाने कैसे हुआ करते थे ! बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by pratibha pande on August 25, 2015 at 8:06am
'तब मोहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे' गीत की तरह बहती हुई प्यारी सी ग़ज़ल के लिए मेरी बधाई लें आप आ० राजकुमारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2015 at 12:21pm

मिथिलेश भैया ,सबसे पहले मैं अपनी भूल सुधारती हूँ .इसकी बह्र है ----२१२२   ११२२   ११२२   २२  

हर अशआर पर आपकी दाद मेरी कलम में नव ऊर्जा भरती हुई प्रतीत हुई लिखना सार्थक हो गया आपका दिल से बहुत -बहुत- बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2015 at 12:18pm

हर्ष महाजन जी ,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित कर सके मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रिया ,आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 24, 2015 at 11:50am

आदरणीया राजेश दीदी, 

बड़ी प्यारी और खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, ग़ज़ल की सादगी और ताजगी दिल में उतर गई "तब और अब" की पृष्ठभूमि पर बहुत बढ़िया शेर निकाले है आपने. शेर दर शेर दाद हाज़िर है -

चीर चट्टान के सीने को मिला करते थे

तब मुहब्बत में सनम लोग वफ़ा करते थे  ............. बहुत खूबसूरत मतला 

 

काट देता था ज़माना भले ही पर नाजुक 

होंसलों से नई परवाज़ भरा करते थे........ बहुत बेहतरीन 

 

दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर

प्यार का अपने वो  इजहार किया करते थे.......... वाह वाह 

 

कैस फ़रहाद या राँझा कई दीवाने तब   

नाम माशूक का तो खूँ से लिखा करते थे......... बढ़िया 

 

एक हम थे  जो जमाने  की नजर से डरकर

जल्द खुर्शीद के ढलने की दुआ करते थे ........... वाह वाह दीदी कमाल का शेर हुआ है. क्या कहन है... हासिल-ए-ग़ज़ल  

 

आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर

चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे  ............. बहुत सुन्दर शेर 

इस शानदार ग़ज़ल पर दिल दे दाद हाज़िर है. 

लेकिन दीदी एक बात और बह्र या वज्न आप भूल गई लिखना .....

Comment by Harash Mahajan on August 24, 2015 at 11:28am

आदरणीय rajesh kumari  जी ग़ज़ल में वज़न इतना की दिल में ठहर गई | वाह...अहसासों को बड़े ही सलीके से सजाकर पेश किया .आपने ...हर शेर पर दाद वसूल पाइयेगा ....मगर ये शेर तो बस.....
." दिल के ज़ज्बात कबूतर के परों पर लिखकर

प्यार का अपने वो  इजहार किया करते थे".....वाह क्या बात है ! एक दम सच .. इस बंद ने सोच को कितने दूर तक सोचने को मजबूर कर दिया | ...ढेरों दाद !! वसूल पाइयेगा !! साभार !!

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2015 at 10:36am

आ० डॉ० गोपाल नारायण भाई जी,ग़ज़ल पर आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का तहे दिल से स्वागत व् आभार है |  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 24, 2015 at 10:34am

आ० दीदी

क्या खूबसूरत गजल कही आप् ने . एक-एक  शेर मोती  जैसा  और फिर वह पुराना दर्द -

आज वो रह गए केवल मेरा सपना बनकर

चाँदनी रात में हम जिनसे मिला करते थे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 24, 2015 at 10:16am

आ०  योगराज जी ,ग़ज़ल को फीचर करने के लिए आपकी नवाजिशों का तहे दिल से शुक्रिया |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service