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गजल ...चाँद तारो से कभी पूंछा नही

बहर -2122/2122/2122/212

आज हम यह सोचते है के बिछड़ कर क्या मिला
हाँ ये सच है जो मिला उसका अलग रस्ता मिला

सोचता हूँ चाँद तारों से ज़रा मै पूछ लूँ
क्या तुम्हे भी राह में जो भी मिला तन्हा मिला

आज आँगन में कही तारा नहीं यादों भरा
छिप के कोने में पड़ा घर का हँसी प्याला मिला

मौसमो की ही तरह है इश्क की आबो हवा
जब चली तो घर मेरा दरका कही टूटा मिला

देख कर अंजाम अपना मैं बहुत हैरान हूँ
चल पड़ा जिस रास्ते पर वो ग़मों से जा मिला

.

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on August 19, 2015 at 11:00pm
लक्ष्मन सर आप को भी मेरा नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on August 19, 2015 at 10:59pm
मिथिलेश सर आप का बहुत आभार
आप लोगो के उत्साह वर्धनऔर आशीर्वाद से ये कलम सरपट दौड़ती है ।
Comment by Ravi Shukla on August 19, 2015 at 12:19pm

आदरणीय आमोद जी  सुन्‍दर ग़ज़ल के लिये बधाई स्‍वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 11:24am

आदरणीय आमोद जी ग़ज़ल में बह्र को खूब साधा है आपने. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2015 at 10:41am

आ० भाई आमोद जी , अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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