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बहर-
212/212/212/212

हम है राही मुहब्बत बताया न कर
प्यार हैरत सें ऐसे जताया न कर

आँख बह जाने दे देख बस तू ह्रदय
भीग जाये जो दामन सुखाया न कर

जिंदगी की राह पर साथ आ हमसफ़र
पास रह के तू दूरी बनाया न कर

क़त्ल करना है तो क़त्ल कर दे मुझे
धार चाकू दिखा कर डराया न कर

जानता हूँ तू वैद्यो के घर से जुडी
दोस्ती में मेरी जखम खाया न कर

प्यार मजहब कभी भी नही देखता
यार मजहब की भाषा सिखाया न कर

सोंच मत हाँथ दे बे फिकर हम सफ़र
लुत्फ़ तू जिंदगी का घटाया न कर
--------------------------------------------
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 9:37am
जानता हूँ तु वैद्यों के घर में जन्मी
पर मेरे हमनशीं जख्म खाया न कर
या
जानता हूँ तु वैद्यों के घर से जुडी
पर मेरे हमनशीं जख्म खाया न कर
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 9:35am
जानता हूँ तु वैद्यों के घर में जन्मी
पर मेरे हमनशीं जख्म खाया न कर
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 9:27am
प्यार की राह पर साथ दे हम सफ़र
पास रह के तु दूरी बनाया न कर
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 9:23am
आ गिरिराज सर
आप के स्नेह और मार्ग दर्शन के लिए
सादर आभार
आप ने वो कमिया बताई जो सिर्फ एक
उस्तज ही बता सकता था
सर सादर आभार नमन

सर बदलाव मतले पर बदलाव की बात की
तो फिर एक प्रयास---

ऐ मेरे हमसफ़र वक्त ज्याया न कर
प्यार हैरत से इतने जताया न कर

अब सर सायद अताया
ख़त्म हो आया हो जाये
सर एक बार देखिये गया
कुछ सही हुआ

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 7:36am

आदरनीय आमोद भाई . ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है , आपको हार्दिक बधाइयाँ -

1- मतले मे आपने ,  बताया और जताया ले कर  काफिया  अताया तय कर लिया है , और बाक़ी शे र मे आपने केवल आया निभाया है , तो अभी फिल हाल आपके बाक़ी शे र काफिया के लिहाज़ से खारिज हो रहे हैं ।
2- जिंदगी की राह पर साथ आ हमसफ़र   -- ये मिसरा बे बहर है , देख लीजिये गा

3- ज़खम को ज़ख्म कर लीजियेगा , नही तो ये मिसरा भी बेबहर लगेगा ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 11:03pm
सर इस गजल के बारे में भी कुछ जानकारी मिल जाती तो अच्छा होता

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