For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तमीज से गुजर मियाँ - सुलभ

गजल
====
बहर - 212 1212 1212 1212
काफिया - अर, रदीफ - मियाँ

किस्म-किस्म के जहर हैं हमपे बेअसर मियाँ
उम्र बीती आदमी का झेलते जहर मियाँ

दर्द बाँटने अगर तू आया है अवाम का
आसमान से जरा जमीन पर उतर मियाँ

सब तुम्हारे गुम्बदों की शान से सिहर गए
झोपड़ी मेरी तबाह कर गए कहर मियाँ

चाह मंजिलों की थी न जीत की ललक रही
वक्त ही गुजारना था, तय किए सफर मियाँ

अंधड़ों से लड़ता एक दीप मिल ही जाएगा
देख अपने दिल में एक बार झांक कर मियाँ

ताज-तख्त ठोकरों पे रहते आए हैं यहाँ
प्यार की गली है ये तमीज से गुजर मियाँ

रक्ख दी थीं म्यूजियम में कीमती धरोहरें
हो गयीं सफाई में कहीं इधर-उधर मियाँ

-------- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 13, 2015 at 11:21am

वाह  वह्ह्ह्ह बहुत शानदार ग़ज़ल हुई शेर दर शेर दाद कुबूलें आ० सुलभ जी|

Comment by Ravi Shukla on August 13, 2015 at 11:21am

अादरणीय सुलभ जी बडा पसंद आया ग़ज़ल का अंदाज बधाई कुबूल करें

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 13, 2015 at 11:12am

आ0 सुलभ भाई . इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by amod shrivastav (bindouri) on August 13, 2015 at 10:07am
वाह बहुत खुबसूरत
बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 13, 2015 at 9:00am

आदरणीय सुलभ भाई , क्या बात है ! बहुत लाजवाब गज़ल कही है , तेवर भी खूब पसंद आया । पूरी गज़ल के लिये आपको दिली मुबारक बाद ॥

Comment by Jatinder Aulakh on August 13, 2015 at 6:04am
Bahut hi khoobsurat ...share karne ke lye dhanvaad

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 10:38pm

लफ्ज़ दर लफ्ज़ खनकती बह्र में शानदार ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुलभ जी. इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद और शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service