For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- लहरें पतवार के संग किलकती रहीं - सुलभ

बहर - 212 212 212 212

लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं

पालकी बैठ सपने गए साथ में
रास्ते भर उमंगें लरजती रहीं

शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं

सपनों में रातरानी ने घर कर लिया
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं

देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं

तितलियों सी निगाहें उड़ीं दूर तक
श्वास-प्रश्वास लय पर थिरकती रहीं

वक्ष के आम्रवन बौर से भर गए
धड़कनें कोयलों सी कुहुकती रहीं

पुष्प सस्मित अधर-दल पे बिछते रहे
खुश्बुयें शिशु सी आंचल को भरती रहीं

मौलिक एवं अप्रकाशित
-------- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on August 13, 2015 at 3:02pm

बहुत-बहुत आभार Shree Sunil जी !

Comment by shree suneel on August 12, 2015 at 6:32pm
बड़ी हीं मनभावन ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी. हार्दिक हार्दिक बधाई आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर.
Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 6:22pm

बहुत-बहुत आभार Ravi Shukla जी !
लहरें पतवार के सँग किलकती रहीं - संग नहीं सँग पढ़ें
चलिसे रातरानी ने ख्वाबों में घर कर लिया’ किए लेते हैं

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 5:22pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 5:21pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय laxman dhami जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 12, 2015 at 5:20pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी !

Comment by Ravi Shukla on August 12, 2015 at 12:09pm

आरणीय सुलभ जी ग़ज़ल अच्‍छी हुई है बधाई

हमें पढने में दो जगह मात्रा गिराने के बाद भी असुविधा हो रही है

लहरें पतवार के संग किलकती रहीं
मन के पाँवों में पायल सी बजती रहीं

सपनों में रातरानी ने घर कर लिया .......///  रात रानी ने ख्‍बाबों में घर क‍र लिया ////से कुछ सुविधा होती  है  ।
कल्पनायें दुल्हन बन के सजती रहीं

बाद के चार शेर में आपका परिचित अंदाज़ हिन्‍दी के सुन्‍दर शब्‍दों का चित्रण दिख रहा है

बधाई स्‍वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 12, 2015 at 11:58am

ताजगी का अहसास कराती बहुत ही ताज़ा ग़ज़ल है आपकी. एक तो ये आहंगखेज़ बह्र और उसपर आपकी कहन ... वाह 

आदरणीय सुलभ जी इस शानदार ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:34am

देह भर में खिलीं क्यारियाँ-क्यारियाँ
चाहतें ओढ़ घूंघट मचलती रहीं

आ० सुलभ भाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 8:02am

शोखियों की सहेली बनीं चूडि़याँ
लाजवन्ती निगाहें बरजती रहीं  -- क्या बात है , आदरणीय ग़ज़ल के लिये और इस शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
25 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
48 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service