For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ

2212       1221      2212     12

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,
इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |

दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,
अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |

नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,
दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |

अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,
ऐसे चमन  जमी दर ज़मीं  काफिला करूँ |

तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,
अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला करूँ |



मौलिक व अप्रकाशित © हर्ष महाजन

Views: 752

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on August 8, 2015 at 4:32pm

आदरणीय Samar kabeer जी ग़ज़ल को दुबारा कहने की कोशिश की है आपसे तथा गुनीजनों से इस संशोदित रूप पर नज़र डालने की गुजारिश है |

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

इस ज़िंदगी को तुझसे कभी क्यूँ जुदा करूँ |

दिन भर शराब पीता हूँ रोता हूँ दरबदर,
ज़ख्मों भरे मैं सीने को ऐसे सिया करूँ |

 

नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,
उनके दिलों में कैसे खुदाया खिला करूँ |

अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,

ऐसे शज़र ज़मीं पे लगाता चला करूं |


जिसने मेरे दामन को टुकड़ों, में किया होगा,
अब ‘हर्ष’ सोचता हूँ मैं उससे मिला करूँ |

०००

Comment by Harash Mahajan on August 8, 2015 at 11:31am

आदरणीय समर कबीर जी आदाब !! सबसे पहले तो आपका मैं तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ के आपने  मेरी इस रचना पर कदम रखा और अपनी महतवपूर्ण राय मेरी इस तहरीर पर रखी | आपकी  राय के मुताबिक मैं इसे एक बार दुबारा कहने की कोशिश करता हूँ और नए मिसरों के साथ फिर आपकी खिदमत में हाज़िर होता हूँ सर | आभार !!

Comment by Samar kabeer on August 7, 2015 at 11:10pm
जनाब हर्ष महाजन जी,आदाब,ग़ज़ल की कोशिश तो अच्छी है,कुछ मिसरों की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

(1)"अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ"

:- इस मिसरे में एक तो लय बाधित हो रही है,दूसरी बात कि क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,"सिया करूँ" को बहालत-ए-मजबूरी "सिला करूँ" बाँधा है ।

(2)"दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ"

:- यह मिसरा भी लय में नहीं है,चाहें तो इसे इस तरह कर लें :-

"मैं उनके दिल में कैसे ख़ुदाया खिला करूँ"

(3)"अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,
ऐसे चमन जमी दर ज़मीं काफिला करूँ"

:- इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात सानी मिसरा बह्र से ख़ारिज है ।

(4)"तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते"

:-ये मिसरा भी लय में नहीं है,देख लीजियेगा ,बाक़ी शुभ-शुभ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service