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एक ग़ज़ल - सुलभ अग्निहोत्री

सच कहने की हलफ़ उठाई
अपनों से दुश्मनी निभाई

जिसके हाथ तुला दी उसने
पल्ले में पासंग लटकाई

दीपक तले अंधेरा देखा
देखी रिश्तों की गहराई

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई

शेर कटघरे के अन्दर हो
कुछ ऐसे ही है सच्चाई

अपने ही दुखड़ों में खोये
कैसे पढ़ते पीर पराई

फूट पड़ा आवेग पिघलकर
जब सावन की पाती आई

जिसने कपड़े आप उतारे
उसको कैसी जगत हँसाई

मुथरी है तलवार भले ही
लेकिन दिल है हातिमताई

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

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Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2015 at 3:57pm

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई

 

फूट पड़ा आवेग पिघलकर
जब सावन की पाती आई

उपर्युक्त इन दो शेरों ने तो बस मोह लिया, आदरणीय सुलभभाई.
इसग़ज़ल केलिए दिल से दाद कह रहा हूँ

अलबत्ता यह शेर, विशेष कर सानी, एक नज़र और चाहता है, भाईजी.
जिसके हाथ तुला दी उसने
पल्ले में पासंग लटकाई

पासंग वैसे भी पुल्लिंग शब्द है जो अकसर चढ़ाया या लटकाया जाता है.

Comment by Sulabh Agnihotri on August 10, 2015 at 10:16am

बहुत-बहुत आभार, Rahul Dangi जी !

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 9, 2015 at 1:44pm
बहुत ही सुन्दर गजल हुई है आदरणीय बधाइयाँ ।

मुथरी है तलवार भले ही
लेकिन दिल है हातिमताई। इस शे'र के लिए विशेष दाद कबूल करें।
Comment by Sulabh Agnihotri on August 9, 2015 at 12:34pm

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  JAWAHAR LAL SINGH जी !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 11:42am

बहुआयामी गजल प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी! शेर जो मुझे पसंद आये 

हम भी बर्फ़-बर्फ़ हैं केवल
जब से पाई है ऊँचाई....ग़जब!

Comment by Sulabh Agnihotri on August 8, 2015 at 9:53am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  Dr. Ashutosh Mishra जी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 1:01pm

आदरणीय सुलभ जी ..इस ग़ज़ल के कई शेर पसंद आये ..आज पहली बार आपको पढने का मौका मिला ..रचना हेतु ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:24am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  Manan Kumar singh जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:23am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 10:23am

बहुत-बहुत आभार, आदरणीय   Sushil Sarna जी !

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