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“ये देखो विज्ञान आज कितनी तरक्की कर रहा है कितनी अद्दभुत मशीन बना डाली, पुरुष भी महसूस करके देख सकते हैं अब प्रसव वेदना को|" टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में हेडिंग Chinese men get a taste of labor pain with a machine को पढ़ते हुए प्रोफ़ेसर बक्शी अपनी पत्नी से अचानक बोल उठे

”पापा क्या कभी कोई ऐसी मशीन भी बन पाएगी जो रेप के दर्द को भी पुरुष महसूस कर सकें” थोड़ी दूरी पर बैठी बेटी के अचानक इस प्रश्न ने पापा को अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए अपनी आँखों में आये  आँसुओं को छुपाने के लिए अन्दर चले गए|   

(मौलिक एवं अप्रकाशित)  

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Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 9:11pm

बहुत- बहुत शुक्रिया शिज्जू भैया. 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 8:46pm

आदरणीया राजेश दीदी मर्मस्पर्शी लघुकथा है बधाई आपको


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Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 7:28pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी,लघु कथा के मर्म को महसूस कर  अपने विचार रखने के लिए शुक्रिया .  

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 27, 2015 at 7:24pm
एहसास तो वह है जिसे आँखें देख लें तो महसूस करें, कान सुन लें तो महसूस करें, ये मशीने हैं न , अब मशीने काम ही न करें तो बात दीगर……
बधाई आपको आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी, इस भाव पूर्ण लघु-कथा पर , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2015 at 6:46pm

बहुत बहुत आभार मिथिलेश भैया ,लघु कथा पर उपस्थिति और  मर्म को महसूस कर दी गई प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद |


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:48pm

मार्मिक लघुकथा जो इतना झिंझोड़ गई कि झटके से उबरना मुश्किल. सफल. उस यातना की सघनता को शाब्दिक करने में पूर्णतः सफल लघुकथा जिसे केवल महसूस किया जा सकता है. ये बातों बातों में  कमाल हुआ है दीदी.... 

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