For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काली सड़क लाल खून से भीगकर कत्थई हो गई थी। एक तरफ से अल्ला हो अकबर के नारे लग रहे थे तो दूसरी तरफ जय श्रीराम गूँज रहा था। हाथ, पाँव, आँख, नाक, कान, गर्दन एक के बाद एक कट कट कर सड़क पर गिर रहे थे। सर विहीन धड़ छटपटा रहे थे। बगल की छत पर खड़ा एक आदमी जोर जोर से हँस रहा था।

एक एक कर जब सारे मुसलमानों के सर काट दिये गये तब बचे हुए दो चार हिन्दुओं की निगाह छत पर गई। वहाँ खड़ा आदमी अभी तक हँस रहा था। एक हिन्दू ने छलाँग मारकर खिड़की के छज्जे को पकड़ा और अपने शरीर को हाथों के दम पर उठाता हुआ कुछ ही क्षणों में छत पर पहुँच गया। छत पर खड़े आदमी की हँसी गायब हो गई। वो बोला, “मुझे क्यूँ मार रहे हो मैं तो नास्तिक हूँ।"

मारने वाले ने कहा, “तुझे इसलिए मार रहा हूँ क्यूँकि तू हम पर हँस रहा था।”

मरने वाला मरने से पहले इतना ही बोल सका, “हत्यारों को हत्या करने का बहाना चाहिए।”

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 9:24pm

लघुकथा का सार एकदम साफ़ है -हत्यारों के पास संवेदना कहाँ होती है ?उन्हें तो बस हत्या के लिए बहाना चाहिए | इसये सिर्फ सन्देश देनी वाली लघुकथा है ,इसका किसी भी जाति या किसी की भावना को ठेस पहुचाना नही है |बढ़िया प्रयास आ. धर्मेन्द्र कुमार सिंह  जी |

Comment by saalim sheikh on July 21, 2015 at 11:45pm

बेहतरीन चित्रण! 

बेहद सुन्दर लघुकथा !

लेकिन आपको हिन्दू मुस्लिम की जगह शिया,सुन्नी / इराकी,ईरानी/ अहमदी,वहाबी/ नास्तिक,मुस्लिम/ सपाई,आपपाई जैसा कुछ लिखना चाहिए था वर्ना भावनाएं आहत होने का भयंकर खतरा होता है 

बाकि बक़ौल शायर-

वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था

वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 21, 2015 at 10:42pm

जी आदरणीय धर्मेन्द्र जी सम्ह गया , आभार , सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2015 at 4:13pm

बेचारे ’मुसलमान’.. एक-एक कर खून के चिर प्यासे हिन्दुओं के हत्थे चढते गये. ओह ! उनमें एक ऐसा ’हिन्दू’ भी मारा गया जो उन खून के चिर प्यासे हिन्दुओं की पैशाचिकता पर ठहाके लगाता हुआ दुहरा हो रहा था !

इन सभी ’सचेत’ बेचारों में एक मैं भी, एक उन्मुक्त सोचधारी ’हिन्दू’, उन ’हिन्दुओ’ में से एक के द्वारा थुरा गया हूँ.. मैं ठहाके लगाने वालों में से एक हिन्दू, एक पाठक !

आततायी सोच से प्रेरित-प्रभावित उन आतताइयों के मुँह पर किसिम-किसिम के मखौटे हैं. वे किसी ’अवतार’ में अपना काम करते हैं. और, इस ’सचेत’ समाज का रक्त बहाते हैं.  गन्दे !.. तभी तो, एक ’अच्छी कथा’ को मेरा पाठक पढता हुआ ’आइसीयू’ (इण्टेन्शनली सर्कुलेटेड अण्डरस्टैण्डिंग) में पड़ा है, पुनः चैतन्य होने के लिए ! ताकि उन हिन्दुओं में से ’एक’ के द्वारा फिर उसकी रचनात्मकता से मारा जा सकूँ  ! ताकि, उस एक ’हिन्दू’ आतताई को भले ही जुगुप्साकारी, किन्तु उसके लिए लेखकीय आनन्द का नैसर्गिक भान हो..

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आप वाकई कमाल हैं ! बधाई व शुभकामनाएँ. 

बाइ द वे, कमल मित्रा चिनॉय का Why I Joined AAP and Quit the CPI अवश्य पढ़ गये होंगे. ओह, अत्यंत प्रभावी और उत्प्रेरित करता हुआ आर्टिकल है. भले ही अंत में ’भइयाजी.. इस्माऽऽइल’ जैसा ब्रह्मवाक्य सुनाई देता है..  ;-))

Comment by TEJ VEER SINGH on July 21, 2015 at 3:19pm

आदरणीय धर्मेंद्र जी, बडा सटीक और बेबाक व्यंग किया है !बहुत सुंदर लघुकथा!हार्दिक बधाई!

Comment by मनोज अहसास on July 21, 2015 at 2:57pm
बहुत ही संवेदनशील विषय है सर
साहित्य की रक्षा कीजिये
विवादित से बचना ही श्रेष्ठ है
सादर
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 2:46pm
आदरणीय कुशवाहा जी, एक कहावत है "जब सास बहू को डाँटना चाहती है तो वो बेटी को डाँटती है।" उम्मीद है बात स्पष्ट हो गई होगी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 2:39pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 21, 2015 at 2:38pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 21, 2015 at 2:01pm

इसी बीच दंगाइयों में से एक व्यक्ति उछल कर छत पर चढ़ गया ..ऐसा कुछ ज्यदा अच्छा होता शायद 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service