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गज़ल - तुम कहो तो इत्तफाकन सामना ही मान लूँ ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122      2122     212   

क्या मरासिम को हमारे इक सज़ा ही मान लूँ

क़ातिबे तक़दीर की कोई जफ़ा ही मान लूँ

 

भीड़ में मुझ तक पहुँच के थम गये थे जो क़दम

तुम कहो तो इत्तफाकन सामना ही मान लूँ

 

आपकी आँखों ने लिक्खे थे कई ख़त जो मुझे

हर्फ़े बेमानी समझ उनको अदा ही मान लूँ

 

बन्द आखें , हाथ ऊपर कर जो मांगी थी कभी

अब असर से क्या उसे मैं बद दुआ ही मान लूँ

 

अब परिंदे प्यार के उड़ कर नहीं आते इधर

क्यों न अपने आशियाँ को बेसदा ही मान लूँ

 

यूँ तो ये सारा जहाँ है ज़ुर्म तेरा मानता  

दिल मेरा कहता है तुझको बेखता ही मान लूँ

 

घर न मेरा मिल सका यूँ आपने खोजा बहुत

गर इजाज़त आप दें , घर बेपता ही मान लूँ

 

ख़ुद ब ख़ुद सर झुक गया हो जिसकी अज्मत देख के

क़्या गलत है ? गर उसे अपना ख़ुदा ही मान लूँ

 

तेरे तौरे ज़िन्दगी की मैं मज़म्मत क्यों करूँ

और मेरे हक़ में क़्या है, गर बुरा ही मान लूँ   

 

यूँ तो चर्चा खूब है ,पर सिलसिला काइम नहीं

है यही बहतर , वफा को मैं हवा ही मान लूँ

*****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:11am

आदरणीया राजेश जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


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Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:10am

आदरणीय मोहन भाई ,हौसला अहज़ाई का बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:09am

आदरणीया प्राची जी ,आपकी सराहना ने मेरी मेहनत सफल कर दी , 7 शेर को आप को पसंद आये जान कर बहुत ख्शी हुई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 1:28am

आदरणीय गिरिराज सर, शानदार ग़ज़ल हुई है. सभी अशआर कमाल के है. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 15, 2015 at 11:57pm
बधाई
Comment by babita choubey shakti on July 15, 2015 at 10:10pm
सादर नमन आ भंडारी जी बहुत सुंदर गजल बधाई
Comment by vijay nikore on July 15, 2015 at 9:34pm

इस गज़ल के शेर एक से एक बढ़ कर ... 

यह गज़ल मोतियों का हार है।

हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by savitamishra on July 15, 2015 at 8:54pm

बहुत बढिया आदरणीय......सादर नमस्ते

Comment by विनय कुमार on July 15, 2015 at 7:49pm

वाह , वाह , वाह , क्या बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , दिली दाद क़ुबूल कीजिये | सभी शेर लाज़वाब हैं लेकिन ये शेर तो कमाल का लगा मुझे // यूँ तो ये सारा जहाँ है ज़ुर्म तेरा मानता
दिल मेरा कहता है तुझको बेखता ही मान लूँ //.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 7:09pm

वाह  वाह  वाह  ..बहुत  ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आ० गिरिराज जी ,सभी शेर लाजबाब है दिल से बधाई लीजिये. 

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