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बह्र : हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २

 

हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

सीख लिया हमने भी चलना पानी पर

 

राह यही जाती रूहानी मंजिल तक

दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर

 

नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे

फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर

 

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है

सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर

 

जब देखो तब अपनी उम्र लगा देती

गुस्सा आता है माँ की मनमानी पर

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:02am

आदरणीय अमोद जी बह्र बिल्कुल ठीक है। इस बह्र में २२२ को २१२१ एवं २२ को २११ भी किया जा सकता है शर्त इतनी है कि लय भंग नहीं होनी चाहिए।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:00am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी

Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 11:25pm
धर्मेन्द्र सर आप की बहर पहली ही शेर पर गलत है चेक करे

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 11:09pm

यों तो पूरी ग़ज़ल वाह वाह हुई है. मतला ही ध्याम खींच लेता है लेकिन इन दो शेरों केलिए तो दिल खोल कर दाद दे रहा हूँ, आदरणीय -
नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे
फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है
सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर

हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:34pm

इस स्नेह के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय मिथिलेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 11:56am

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, 

पता नहीं इतनी शानदार ग़ज़ल नज़र से कैसे चूक गई. इस लाजवाब और बेमिसाल ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है 

हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

सीख लिया हमने भी चलना पानी पर............ वाह वाह बेमिसाल मतला 

 

राह यही जाती रूहानी मंजिल तक

दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर......... बेहतरीन शेर 

 

नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे

फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर....... शानदार क्या नजाकत है कहन में .... वाह वाह .... दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

 

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है

सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर......... बढ़िया शेर 

 

जब देखो तब अपनी उम्र लगा देती

गुस्सा आता है माँ की मनमानी पर................ वाह .....वाह .... कमाल 

आपकी ग़ज़लों का दीवाना होता जा रहा हूँ.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 10:12am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायन जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 10:11am
ग़ज़ल पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी। यहाँ जिस्मानी का अर्थ ’जिस्मानी मंजिल’ है।
अक्सर ऐसे वाक्य आपने सुने होंगे "मैंने सुना था वो लड़की बुरी है पर वो तो अच्छी है" यहाँ अच्छी का अर्थ `अच्छी लड़की' है। इस तरह के वाक्यों में विशेष्य इम्लाइड होता है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 9, 2015 at 9:15am

बहुत उम्दा कहा , आदरणीय .

Comment by shree suneel on July 9, 2015 at 12:20am
हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर
सीख लिया हमने भी चलना पानी पर... बहुत ख़ूब.. शानदार..
आदरणीय धर्मेंद्र जी, उम्दा शे'र.. . उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. दिल से बधाई आपको.
ऐक संदेह में पड़ गया हूँ आदरणीय, जैसे कहते हैं. 'जिस्मानी ताकत' 'जिस्मानी सज़ा'... तो क्या 'जिस्मानी' विशेषण का प्रयोग अकेले भी हो सकता है. सादर.

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