For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बह्र : हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २

 

हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

सीख लिया हमने भी चलना पानी पर

 

राह यही जाती रूहानी मंजिल तक

दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर

 

नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे

फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर

 

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है

सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर

 

जब देखो तब अपनी उम्र लगा देती

गुस्सा आता है माँ की मनमानी पर

----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 831

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:02am

आदरणीय अमोद जी बह्र बिल्कुल ठीक है। इस बह्र में २२२ को २१२१ एवं २२ को २११ भी किया जा सकता है शर्त इतनी है कि लय भंग नहीं होनी चाहिए।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 17, 2015 at 11:00am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी

Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 11:25pm
धर्मेन्द्र सर आप की बहर पहली ही शेर पर गलत है चेक करे

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 11:09pm

यों तो पूरी ग़ज़ल वाह वाह हुई है. मतला ही ध्याम खींच लेता है लेकिन इन दो शेरों केलिए तो दिल खोल कर दाद दे रहा हूँ, आदरणीय -
नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे
फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है
सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर

हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:34pm

इस स्नेह के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय मिथिलेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 9, 2015 at 11:56am

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, 

पता नहीं इतनी शानदार ग़ज़ल नज़र से कैसे चूक गई. इस लाजवाब और बेमिसाल ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है 

हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर

सीख लिया हमने भी चलना पानी पर............ वाह वाह बेमिसाल मतला 

 

राह यही जाती रूहानी मंजिल तक

दुनिया क्यूँ रुक जाती है जिस्मानी पर......... बेहतरीन शेर 

 

नहीं रुकेगा निर्मोही, मालूम उसे

फिर भी दीपक रखती बहते पानी पर....... शानदार क्या नजाकत है कहन में .... वाह वाह .... दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

 

दुनिया तो शैतान इन्हें भी कहती है

सोच रहा हूँ बच्चों की शैतानी पर......... बढ़िया शेर 

 

जब देखो तब अपनी उम्र लगा देती

गुस्सा आता है माँ की मनमानी पर................ वाह .....वाह .... कमाल 

आपकी ग़ज़लों का दीवाना होता जा रहा हूँ.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 10:12am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायन जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 9, 2015 at 10:11am
ग़ज़ल पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी। यहाँ जिस्मानी का अर्थ ’जिस्मानी मंजिल’ है।
अक्सर ऐसे वाक्य आपने सुने होंगे "मैंने सुना था वो लड़की बुरी है पर वो तो अच्छी है" यहाँ अच्छी का अर्थ `अच्छी लड़की' है। इस तरह के वाक्यों में विशेष्य इम्लाइड होता है।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 9, 2015 at 9:15am

बहुत उम्दा कहा , आदरणीय .

Comment by shree suneel on July 9, 2015 at 12:20am
हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर
सीख लिया हमने भी चलना पानी पर... बहुत ख़ूब.. शानदार..
आदरणीय धर्मेंद्र जी, उम्दा शे'र.. . उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. दिल से बधाई आपको.
ऐक संदेह में पड़ गया हूँ आदरणीय, जैसे कहते हैं. 'जिस्मानी ताकत' 'जिस्मानी सज़ा'... तो क्या 'जिस्मानी' विशेषण का प्रयोग अकेले भी हो सकता है. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
17 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service