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आस का सुर्योदय (लघुकथा ) कान्ता राॅय

आस का सुर्योदय ( लघुकथा )


सर पर लकड़ी का गठ्ठर , पसीने से तर- बतर वो घर की ओर चली आ रही थी । माई का डर मन ही मन सता रहा था उसे । कल रात ही माई ने बोल दिया था कि ,

"चुल्हा चौका और घर का काम करके अगर समय मिले तो ही पढना छोरी ! "
माई भी क्या करें .. खेत पर बापू के संग काम पर जाना जो होता है !

आज सुबह सीतो अखबार लेकर आ गई थी ।

" देख तु जिले में प्रथम स्थान पर आई है ! " -- सीतो ने जैसे ही कहा , सुनते ही उसके खुशी से पैर , बदन सब काँप उठे थे ।

माई ने सीतो के हाथ से अखबार फेंक दिया तो वो जैसे सहम सी गई ।सीतो मुंह लटकाये उल्टे कदमों से वापस चली गई ।
और माँ ने भन्नाते हुए उसे डाँट कर कुआँ से पानी लाने भेज दिया । निराशा से भरी वह कुएँ की तरफ बढ़ चली ।

" माई , देख तो ...शाम हुई अब तक गाय नहीं आई चर कर ...! " खूंटे पर गाय बंधी ना देख वो पूछ बैठी ।

" अब खूंटे पर गाय नहीं , तेरे हाथों में लैपटॉप होगा छोरी । " बापू गर्व से छाती चौडी के साथ लैपटॉप लेकर देहरी से अंदर आते हुए बोल उठे । आस का सुर्योदय हो चुका था ।



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 5, 2015 at 8:06pm

वाह बहुत ही सुन्दर! आदरणीया कान्ता रॉय जी 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 3:09pm

बहुत सुन्दर आदरणीया लघुकथा का सुखांत प्रेरक है! हार्दिक बधाई!

Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 7:26am
आभार आपको आदरणीय मोहन सेठी जी कथा पर मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 7:25am
कथा पसंदगी के लिए हृदय तल से आभार आपको आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 4, 2015 at 5:56pm

वाह वाह बहुत आशावादी लघुकथा ....हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 4, 2015 at 4:19pm

बहुत सुन्दर सकारात्मक और प्रेरणास्पद लघुकथा हुई है. लघुकथा का सुखांत मुग्ध कर रहा है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

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