For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ब्राँडेड मवाली ( लघुकथा ) कान्ता राॅय

ब्राँडेड मवाली ( लघुकथा )


" कितनी अचरज की बात थी कि वो बाई होकर ख्वाब देख रही है । "

" तुम्हें क्या लगता है कि बाई को स्वप्न नहीं देखना चाहिए ...!!"

" स्वप्न देखने का आधार भी तो होना चाहिए । आपने देखा नहीं कि वो दो बार दसवीं में फेल होकर बडी मुश्किल से बारहवीं में सप्लीमेंटरी से पास हुआ है और वो है कि बेटे को इंजीनियर बनाने की बात कर रही थी ।इधर बेटा सड़कों पर मवालीगिरी करता फिरता है और उधर माँ के स्वप्न.. हुँह !!! "

" यही मवाली तो पढ लिख कर ब्राँडेड मवाली बनेंगे ।"




कान्ता राॅय
भोपाल
मौलक और अप्रकाशित

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 1:15pm
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ...... जल्दी ही इस पर और मेहनत करती हूँ मै । आभार आपको प्रतिक्रिया देकर मुझे त्रुटि इंगित करने के लिए ।
Comment by kanta roy on July 13, 2015 at 1:13pm
इस कथा पर तो जैसे मेरा दिमगवा ही जाम हुआ बैठा है आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी । कई दिनों से इसे देखती हूँ और कुछ प्रयास की कोशिश करती हूँ लेकिन वही ढाक के तीन पात ही साबित होते है मेरे लिए । कुछ दिनों बाद इसे हमारे लघुकथा कक्षा नामक इसी मंच के अस्पताल में भर्ती कर दूंगी जिससे मृत प्रायः हो चुके इस कथा को कही जीवन मिल सके । नमन आपको ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 1:18am

प्रस्तुति पर सार्थक चर्चा हो रही है. अच्छे सुझाव भी आये हैं. अनुकरण करना श्रेयस्कर होगा, आदरणीया

सादर शुभकामनाएँ ..

Comment by maharshi tripathi on July 5, 2015 at 9:50pm

आ.  kanta roy जी, कौन ,किससे कह रहा ये स्पष्ट कर दें ,ऐसा मैंने आपके किसी लघुकथा पर कहा था ,,जिससे  संवादों पर ज्यादा दिमाग न लगाना पड़े ,,,मुझे यही लगता है ,,,  ,मुझे ये समझ नही आया की ,,,आप सन्देश क्या देना चाहती हैं ,,,कृपया स्पष्ट करें |

Comment by kanta roy on July 5, 2015 at 1:41pm
बहुत सार्थक टिप्पणी की है आपने आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी , ब्राँडेड को लेकर आपका विवेचना बेहद सटीक और गंभीर लगा । हमें कथा निर्माण के समय कहाँ कहाँ क्या सावधानी रखने की जरूरत है इस कथा से मुझे समझने की बहुत जरूरत है । कोशिश करूंगी कि मै अपनी अगली कथाओं में यह गलती फिर ना दोहराऊँ । आभार तहे दिल से
Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 1:24pm

आदरणीया कान्ता जी,

सुन्दर भाव के साथ कथा आयी है. मिथिलेश जी के विचार ध्यान देने लायक हैं.

शीर्षक के साथ दो औरतों का वार्तालाप सम्बन्ध नहीं जोड़ पा रहा है.

//उधर माँ के स्वप्न.. हुँह !!!// ये अभिजात्य वर्ग की औरतों का बाई के प्रति नजरिया बतलाता है. जिसे शायद कथा में प्रमुखता नहीं दी गयी है.

यहां बाई याने माँ की मेहनत और बेटे के पैसा लुटाने के तरीके पर थोडा़ ज्यादा विस्तार दिया जा सकता था. जिससे ब्राण्डेड समान के मोह के साथ जोड़ने की बात स्पष्ट हो जाती.  

वैसे ब्राण्ड के साथ ज्यादातर अभिजात्य वर्ग ही जाता है, और वैसे घरों के बिगडे़ लड़कों को शायद ब्राण्डेड मवाली कह सकती हैं. 

सादर.

Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 7:09pm
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय गिरीराज जी , यह महज़ एक प्रयास ही रह गई है । हालांकि मै इस कथा से बिलकुल भी संतुष्ट नही लेकिन इसके संप्रेषण में कहाँ चुक हुई है मै अवश्य जानने को आतुर हूँ ॥ हमारे वरिष्ठ जनों का मुझे इस कथा पर इंतजार है । सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 3, 2015 at 6:30pm

आदरणीया , आपकी लघुकथा में सच मे वो बात नही आयी जो आपकी अन्य कथा मे होती है , मै चूँकि जानकार नही हूँ और कुछ नही कह सकता । प्रयास के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by kanta roy on July 3, 2015 at 3:25pm
इस कथा में शायद मै जो कहना चाह रही थी वो भाव स्पष्ट नहीं कर पाई हूँ । आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मै भी बिलकुल नई हूँ इस विधा में । कोशिश जारी है निरंतर कि शब्दों में कथ्य और तथ्य का सामावेश सही तालमेल के साथ रोपित करने में । हर विषय पर सही प्रस्तुति को अभी साधने की मुझे बेहद जरूरत है । इस कथा पर मै भी श्रेष्ठ जनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ । अपेक्षा है उनसे कि वो इस कथा की सही विवेचनात्मक टिप्पणी कर हमें अनुग्रहित करें । सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 3:06pm

आदरणीया कांता जी, 

इस लघुकथा को मैंने कई बार पढ़ा 

संशोधन के बाद भी पढ़ा ( ये संशोधन -दो बार दसवीं में फेल होकर बडी मुश्किल से बारहवीं में सप्लीमेंटरी से पास हुआ है )

इन सबके बावजूद मैं लघुकथा के शीर्षक के आशय और लघुकथा के मर्म तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ. 

अंतिम पंक्ति सोचने के लिए तो विवश कर रही है पर क्या सोचना है ये समझ नहीं पा रहा हूँ. 

इस विधा और इसके शिल्प हेतु बिलकुल नया अभ्यासी हूँ इसलिए मार्गदर्शन चाहता हूँ.

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service