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लघु कथा मट्ठियाँ

अम्मा  फ़ैल कर  जमीन पर   बैठी  आवाज़  करके  चाय  सुड़क  रही  थी I  मैं  अपने  दोनों  बच्चों  के  चेहरों  पर,  अम्मा  को  लेकर चिढ      साफ़  देख  पा  रही  थी I

" सविता  , तू  डब्बा भर के  मट्ठियाँ  क्यों  नहीं  बना  के  रख लेती ,I  सुबह  शाम  पकड़ा  दिया कर इनके हाथों में I दिन  भर  तंग  करते  हैं ये बना  वो  बना I"

" माँ , इन्हें  पसंद  नहीं  है मट्ठियाँ I"

" पसंद  नहीं  हैं ? अरे  तुम्हारी  मम्मा  की  बुआ , गर्मी  की छुट्टियों  में  आती  थी , दो  महीने  के  लिए अपने  बच्चों के साथ  ,और  दो  बड़े  बड़े डब्बे  भर  कर , मट्ठियाँ बना  के  लाती  थी  I   सब  बच्चे  वो  ही खाते  फिरे  थे सारे  दिन I,  और  सबसे ज्यादा  खाती   थी , ये  सविता , तुम्हारी  मम्मा "I

" मम्मा ,   वो  सारी  छुट्टियाँ  आप  लोगों  के  साथ  रहते थे i ?  डिस्टर्ब  नहीं  होते  थे  आप लोग i i 

मैं  अम्मा  को  देख रही  थी,  जो  आस पास से  बेखबर  फिर  से  चाय  सुड़कने  में  लग  गई थी ,   सुड़क  ,सुड़क I

  मौलिक  व  अप्रकाशित 

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 16, 2015 at 10:29pm
हमें भी ठीक लगीलगी बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 16, 2015 at 10:21pm

अपना ! निजी ! व्यक्तिगत ! एकाकीपन नहीं स्वयं के हिताकांक्षी जीवन-क्षणों का बोध कराते ये शब्द अब व्यवाहारिक भाव का हिस्सा हो चुके हैं. समवेत जीवन जीने को जो समाज दकियानूसी समझने लगे वह भविष्य में अपने लिए अधीरता मोल ले लेता है.
अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई. सतत प्रयास से शिल्पगत प्रस्तुतीकरण सुगढ़ होता जायेगा.
शुभेच्छाएँ

Comment by pratibha pande on July 9, 2015 at 2:06pm

कथा की सराहना के लिए आपका आभार , आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2015 at 9:10pm

अब तो इतने दिन का मेहमान किसे भायेगा . सारी गर्मी की छुट्टी . बढ़िया कथा .

Comment by pratibha pande on July 8, 2015 at 1:58pm

प्रशंसा  के  लिए धन्यवाद  आदरणीय  जवाहरलाल सिंह जी I एक  प्रश्न  अक्सर  दिमाग में  आता  है कि ' पंच '  शब्द के  लिए   हिंदी  में  कौनसा  सटीक  शब्द हो  सकता  है  I आजकल  हम  अक्सर  इस शब्द का  इस्तेमाल करते हैं I

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 7, 2015 at 8:39pm

वाह गजब का पञ्च मारा आपने! बहुत सुन्दर! अपना दिन किसे याद रहता है?

Comment by pratibha pande on July 7, 2015 at 3:05pm

कथा  की  प्रशंसा  के लिए आभार ,आदरणीय  अमन कुमार जी I

Comment by pratibha pande on July 7, 2015 at 3:01pm

कथा  की  सराहना  के लिए  आपका  तहे दिल से आभार  आदरणीय  विनय कुमार जी I

Comment by pratibha pande on July 7, 2015 at 2:48pm

 मैंने  त्रुटी  ठीक  कर  ली है I कथा  की  प्रशंसा के  लिए धन्यवाद  आदरणीय  मिथिलेश  वामनकर  जी I 

Comment by aman kumar on July 6, 2015 at 2:06pm

सत्य घटना  का वर्णन सी कथा है , अति सुंदर !

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