For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं

बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२

हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं

सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं

 

जले गर आग तो उसको सही दिशा भी मिले

गदर कई हैं मगर इंकिलाब कितने हैं

 

जो मेर्री रात को रोशन करे वही मेरा

जमीं पे यूँ तो रुचे माहताब कितने हैं

 

कुछ एक जुल्फ़ के पीछे कुछ एक आँखों के

तुम्हारे हुस्न से खाना ख़राब कितने हैं

 

किसी के प्यार की कीमत किसी की यारी की

न जाने आज भी बाकी हिसाब कितने हैं

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 758

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मोहन बेगोवाल on June 28, 2015 at 1:41pm

 आदरणीय धर्मेन्द्र जी, सभी अश'आर कमाल के कहे - बधाई हो 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2015 at 12:26pm

आ०  धर्मेन्द्र जी

बहुत गजब लिखा . आपको बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:45am

शानदार 

लाजवाब 

बेमिसाल 

ग़ज़ल हुई है ...... वाह वाह 

शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by दिनेश कुमार on June 27, 2015 at 10:53pm
क्या बात है, बेहतरीन ग़ज़ल। वाह वाह
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2015 at 6:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया वीनस जी

Comment by वीनस केसरी on June 27, 2015 at 3:34pm

वाह वा भाई बेमिसाल ग़ज़ल हुई है ... मज़ा आ गया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2015 at 2:54pm
तह-द-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह बना रहे।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2015 at 2:53pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 27, 2015 at 2:48pm
बहुत बहुत शुक्रिया भुवन साहब। मेरी को मिरी या मेरि भी पढ़ा जा सकता है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 27, 2015 at 1:37pm

क्या ब्बात है , आदरणीय धर्मेंद्र भाई ,  बेमिसाल गज़ल कही है , हरेक शे र पर बस वाह वाह करता रहा  ! पूरी गज़ल के लिए दिल से बधाइयाँ आपको ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service