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ग़ज़ल -- ये मेरा असर है ( गिरिराज भंडारी )

122    122 

ले, कदमों पे सर है

लो, अब भी कसर है

 

जो मर ही चुके हो

तो अब किसका डर है

 

नहीं ख़त्म होगा

ये मेरा असर है

 

नहीं कोई मंज़िल

महज़ रह ग़ुज़र है

 

तो घर में ही बैठो

अगर तुमको डर है

 

लिखे शह्र जिसको

हमें वो शहर है

 

नहीं है जो कड़वा

वो मीठा ज़हर है

 

लो, अन्धों से  सुन लो 

कहाँ रह गुज़र है

****************

मौलिक एवँ अप्राशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2015 at 9:26pm

आदरणीय कृष्ना भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2015 at 9:26pm

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2015 at 9:25pm

आदरणीय वीनस भाई , सराहना के लिए आपका बहुत शुक्रिया । जी ठीक है , अभी मतला नहीं बदल रहा हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 26, 2015 at 9:24pm

आदरणीय विनय भाई , आपका बहुत बहुत आभार ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 26, 2015 at 8:47pm

 नहीं ख़त्म होगा

ये मेरा असर है

बेहतरीन आदरणीय!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2015 at 3:12pm
अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय गिरिराज जी, दाद कुबूल करें
Comment by वीनस केसरी on June 26, 2015 at 12:13am

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है

सर और कसर,,, पर कुछ कहना है अभी मतला मत बदलियेगा .....

Comment by विनय कुमार on June 26, 2015 at 12:08am

// नहीं है जो कड़वा
वो मीठा ज़हर है // , वाह , बहुत उम्दा , बधाई आदरणीय.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:48pm

आदरणीय पाठकों   मतले मे काफिया बन्दी में गलती है , कृपया उसे सुधार कर यूँ  पढ़ने की कृपा करें  

मतला 

यूँ , क़दमों मे सर है

कसर कुछ मगर है    ---  धन्यवाद ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 8:44pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया , आपका ।

कृपया ध्यान दे...

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