For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी  हमने  

अन्यथा जीवन में  कुछ भी कर नहीं पाते

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1342

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 3:09pm

आ० समर कबीर साहिब आपने बिलकुल सही फरमाया . हम नौशिखिये भटक ही जाते हैं , मुआफी चाहता हूँ .  सादर .

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 19, 2015 at 2:57pm
आदरणीय समर साहब जी माफ किजिएगा इस ओर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया क्षमा।
Comment by Samar kabeer on June 19, 2015 at 2:08pm
जनाब राहुल डांगी जी,जनाब गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,पहले तो ये तय कीजिये इसमें रदीफ़ और क़ाफ़िया है क्या,"घर","दर","पर" अगर इस ग़ज़ल के क़ाफ़िये हैं तो फिर रदीफ़ क्या है ? ग़ज़ल में क़ाफ़िये बदलते हैं रदीफ़ नहीं,मतले के पहले मिसरे में "जाते",और दुसरे मिसरे में "आते" ,इसी प्रकार हर शैर में हर शैर में यही क्रम है-"आते","जाते","गाते","भाते", इस लिहाज़ से इस ग़ज़ल की रदीफ़ हुई "ते" और क़ाफ़िया हुए "आ","जा","भा","गा",मैंने इसी लिहाज़ से इस मिसरे का सुझाव दिया था और ये ग़लत नहीं है ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 10:34am

प्रिय कृष्णा

आपकी शुभ कामना काआभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 10:33am

आ० समीर कबीर जी

राहुल जी ने जो कहा  उससे मैं  भी सहमत हूँ , कृपया  कुछ और  तजबीज कीजिये . सादर .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 19, 2015 at 10:26am

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

ख़ूब आ० गोपाल सर! आ० आप स्वयम में सक्षम है गजल सीखने में ये त्रुटीयां आम है,अभ्यास धीरे धीरे इन्हें दूर करेगा!नमन!

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 19, 2015 at 8:59am
आदरणीय समर कबीर जी आपने भूल से काफिया ही छोड दिया सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 8:44am

आ० नीलेश जी

आप् जैसे  गुनी जनो से जो हौसला मिलता है उसी के बल पर अपने को आजमा रहा हूँ . बस प्यार बना रहे . . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 19, 2015 at 8:41am

आ० सोमेश

गजल विधा पर मेरे कदम नए है , जब मैं हिन्दी का  छात्र था तब तक हिंदी में गजल विधा स्थापित नहीं हुयी थी . पर कोशिश जारी है .

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 19, 2015 at 7:50am

बहुत कूब प्रयास है आदरणीय ..वरिष्ठजनों ने सुधार सुझाएँ हैं अत: उस विषय पर कुछ नहीं कहूँगा. आप की लगन और ग़ज़ल के प्रति प्रेम बस ऐसे ही बना रहे..यही दुआ है.
मुझे लगता है कि आप लय के अनुसार लिख रहे हैं जो अच्छी बात है लेकिन बाद में हर मिसरे की तक्तीअ (मात्रा गणना) करने से आप स्वयं ये जान पाएँगे कि चूक कहाँ हो रही है ..
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service