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ग़ज़ल - फिल बदीह -- वहीं आज मैने बग़ावत लिखी है ( गिरिराज भंडारी )

122     122     122    1222

 

जहाँ ने जहाँ पर शराफत लिखी है

वहीं आज मैने बग़ावत लिखी है

 

महज़ क्यूँ क़िताबों मे चाहत लिखी है

दिलों में तो पत्थर से नफ़रत लिखी है

 

ये अतफाल तहज़ीब लाये कहाँ से   --- बच्चे

दिलों में मुख़ालिफ इबारत लिखी है

 

ज़रा गौर से आप पढ़ लें , तो जाने

हरिक जा पे मैने मुहब्बत लिखी है

 

बड़ी कोशिशों से जो पाटी थी खाई

वहाँ किसने फिर से अदावत लिखी है ?

 

भले आप नेकी का दें नाम , लेकिन

हर इक् शक़्ल में तो तिजारत लिखी है

 

न बोलें मुझे, मैं ज़ुबाँ से भी बोलूँ

मेरी आँखें पढ़ लें , ज़रूरत लिखी है

 

वरक़ सारे देखे, हरिक लफ्ज़ परखा

महज़ मेरी क़िस्मत में ग़ुरबत लिखी है

 

ख़ुदा है,  बता तू , कहाँ है जगह वो ?

जहाँ तेरे बन्दों ने राहत लिखी है 

*********************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 13, 2015 at 4:00pm
अच्छे अश’आर हुए हैं आ. गिरिराज जी, दाद कुबूल करें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 13, 2015 at 8:51am

आदरणीय समर भाई ,  आपकी इनायतों और इस्लाह के लिये आपका बहुत शुक्रिया । सौधार कर रहा हूँ ।  बस तीसरी सलाह के लिये मुआफी चाहूँगा , मैने जिस भाव से शे र कहा है वो भाव आपकी सलाह में नहीं आ रहा है , मै अपने ईश्वर से प्यार भरी नाराज़गी जताई है , जो एक भक्त का अधिकार है । आपकी सलाह मे केवल प्रार्थना का भाव है ।  

ख़िलाफत वाले शे र  को अब ऐसे कह रहा हूँ   --- 

ये अतफाल तहज़ीब लाये कहाँ से   

दिलों में मुख़ालिफ इबारत लिखी है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 13, 2015 at 8:43am

आदरणीया कांता जी , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by वीनस केसरी on June 12, 2015 at 11:35pm

वाह वाह शानदार ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद क़ुबूल फरमाएं ...
जहाँ जहाँ मेरी नज़रें ठहर गयी थीं उनका जिक्र पहले ही समर साहब कर चुके हैं ....

Comment by Samar kabeer on June 12, 2015 at 4:24pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,ये फ़िल बदीह ग़ज़ल भी अच्छी हुई है,कुछ बिंदुओं की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

(1)"ये अतफाल तहज़ीब लाये कहाँ से
वरक़ दर वरक़ बस ख़िलाफत लिखी है"

इस शैर में क़ाफ़िया सही नहीं है,ख़िलाफ़त कहते हैं हुकूमत को यहाँ पर आपने ख़िलाफ़त को विरोध के meaning में लिया है,सही शब्द है मुख़ालिफ़त ।

(2)"सभी शक़्ल में तो तिजारत लिखी है"

इस मिसरे को इस तरह करना उचित होगा :-

"हर इक शक्ल पर तो तिजारत लिखी है"

(3)"ख़ुदा है, बता तू , कहाँ है जगह वो ?"

यह मिसरा इस तरह करना उचित होगा :-

"ख़ुदा तू बता दे कहाँ है जगह वो"

,बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by kanta roy on June 11, 2015 at 11:36pm
वरक़ सारे देखे, हरिक लफ्ज़ परखा
महज़ मेरी क़िस्मत में ग़ुरबत लिखी ..... हर शेर में कितनी आपने मोहब्बत लिखी है । इस शानदार गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरीराज भंडारी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 4:37pm

आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन और सराहना के लिये आपका दिले से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 4:36pm

आदरणीय राहुल भाई , आभार आपका ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2015 at 4:20pm

आदरणीय गिरिराज भंडारे जी, बहुत बढ़िया लिखा है आपने, बगावतेन न होती तो दुनिया में परिवर्तन ही न होते , आपका यह शेर तो पूरा है अपने आप में.
जहाँ ने जहाँ पर शराफत लिखी है
वहीं आज मैने बग़ावत लिखी है
दूनियाँ का नज़रिया भी सही बयान किया है आपने,
भले आप नेकी का दें नाम , लेकिन
सभी शक़्ल में तो तिजारत लिखी है.
यकीनन हुकूमतों ने जितनी भी नेकियाँ कीं , वो या तो अपने लम्बे फायदे के लिए या तिजारती मजबूरियों में। मक़सद तो दोनों में ही तिजातर था, आज भी वही है। बहुत बढ़िया बहुत बहुत बधाइयां, सादर।

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 11, 2015 at 4:08pm
सुन्दर गजल

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