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भांग का पौधा ........इंतज़ार

ये मेरे दिल में जो तूने
एक भांग का पौधा 
बो दिया था
अब वो बड़ा हो गया है
और लत लग गई है मुझे
रोज़ दो पत्ती खाने की...
प्यार के नशे में तेरे
डूबना बड़ा अच्छा लगता है
कहते हैं कि नशा गुनाह है
मगर यहाँ किसे परवाह है
अगर मैं मुजरिम हूँ
तो सिर्फ़ तेरा
तू चाहे जो सज़ा दे दे
मंज़ूर है सब
मगर शर्त ये है कि
कभी कभी इसे सींच देना
अपने एहसासों की बौछार से !! 

***********************************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 7, 2015 at 5:32am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी हार्दिक आभार ...आप की उपस्थिति एवं प्रशंसा हेतु ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 7, 2015 at 5:28am

जनाब Samar kabeer जी आदाब ...आप का शुक्रिया आपने पौदा और पौधा का कन्फ़िउजन दूर कर दिया .....सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 6, 2015 at 10:28pm

बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई .

Comment by विनय कुमार on June 6, 2015 at 9:38pm

सुन्दर और संवेदनशील पंक्तियाँ , बधाई आदरणीय .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2015 at 1:21pm

बहुत  बढ़िया

छोटी किन्तु मर्मस्पर्शी

Comment by Samar kabeer on June 6, 2015 at 10:17am
जनाब मोहन सेठी 'इंतज़ार',जी,आदाब,पौधा भी सही है ,पौदा भी सही है,पौधा हिन्दी में और पौदा उर्दू में,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 6, 2015 at 5:45am

आदरणीय Shubhranshu Pandey जी हार्दिक आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on June 6, 2015 at 5:44am

आदरणीय Shubhranshu Pandey जी धन्यवाद शायद मैंने दो पत्ती खा कर ही लिखी थी इसलिए .....सुधार के लिये एडिट कर दिया है ...आभार 

Comment by Shubhranshu Pandey on June 5, 2015 at 8:55pm

आदरणीय पौदा और पौधा में कन्फ़्युज्ड हूँ.

सादर.

Comment by maharshi tripathi on June 5, 2015 at 7:00pm

सुन्दर भाव से सजी कविता पर आपको हार्दिक बधाई आ.Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |

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