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कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

मैं कैसे कर्ब से तकलीफ़ से गुज़रता हूँ
कोई सुने तो बयाँ दिल का दर्द करता हूँ

तमाम टैक्स चुकाता हूँ ज़िंदा रहने के
प शाईरी का अलग से लगान भरता हूँ

यही सबब है ,मुझे कम ही लोग जानते हैं
मैं इन फ़ुज़ूल की रुसवाईयों से डरता हूँ

अज़ल से आज तलक सिलसिला ये जारी है
मैं रोज़ जीता हूँ दुनिया में रोज़ मरता हूँ

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ

वो जिस में 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' ग़ोता ज़न थे "समर"
मैं रोज़ रात को उस झील में उतरता हूँ

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:25pm
आली जनाब डॉ विजय शंकर जी,आदाब,आपके बग़ैर मंच सूना लग रहा था ,मेरी कुछ और ग़ज़लें आपके देखने से रह गई हैं,कृपा कर उन्हें भी देख लीजियेगा ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by maharshi tripathi on June 3, 2015 at 11:19pm

आ.  Samar kabeer जी ,,आपकी गजलों की बिना ये मंच suna है ,,,आ. मैं अपने सेमेस्टर एग्जाम में व्यस्त tha ,,इसीलिए आपकी कई गजलें नही पढ़ पाया ,,,पर आगे से जरूर शिरकत करूँगा |

Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:19pm
जनाब मोहन सेठी "इंतज़ार" जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:17pm
जनाब "जान" गोरखपुरी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:16pm
जनाब महर्षि त्रिपाठी जी,आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी शिर्कत मेरी ग़ज़ल में हुई है,कहाँ थे जनाब ? ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:12pm
जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:10pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 11:09pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 2:43pm

वाह वाह वा.. न जाने कैसे चूक गया इसे पढने से ...
हर शेर पर बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 3, 2015 at 1:34pm

यही तो है,मिरे फ़न का कमाल,देखो तो
जहाँ पे मिटते हैं सब लोग,मैं सँवरता हूँ..बेहतरीन बेहतरीन आदरणीय समर कबीर जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है ..आप इतना कमाल का लिखते हैं हम जैसे सीखने वालों को नयी राह नया चिंतन मिलता है ..आपको ढेर सारी बधाई सादर

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