For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसके हिस्से का उजाला (लघुकथा)

" अरे छोटका क माई , देख तो तनिख । काम भर का पत्तल बन गया है न की अउर बनायें "। मुसहराने का दुखिया बहुत खुश था , आखिरकार गाँव में शादी थी और पत्तल उसी के यहाँ से जाती थी ।

" काल तनिक अउर पत्तल बना लेना , कहीं कम न पड़ जाये । याद है न पिछले बियाह में घट गया था पत्तल , केतना गाली सुनाये थे हमको अउर पइसो पूरा नहीं मिला था "। दुखिया ने हामी में सर हिलाया , कइसे भुला सकता था उसको ।

अगले दिन भिन्सहरे ही वो लग गया अउर पत्तल बनाने में , इस बार कम न पड़े । छोटका भी लगा हुआ था उसके साथ और दौड़ दौड़ कर सब काम कर रहा था । शाम तक ढेर सारा पत्तल तैयार था अउर दुखिया खुश था कि इस बार कौनो गड़बड़ नहीं होगा । अब इंतज़ार था अगले दिन का जब गाँव में जा कर पत्तल पहुँचाना था ।

अगले दिन पत्तल का गट्ठर बनाकर दुखिया निकल गया गाँव की ओर । छोटका भी साथ था , गाँव में घुसते ही सजावट दिखने लगी उनको । दोनों ख़ुशी ख़ुशी शादी वाले घर पहुंचे और एक किनारे पत्तल रखकर बैठ गए । बस इंतज़ार कि घर का कोई आये और पत्तल ले । तभी एक जीप आके दरवाजे पर रुकी और घर के लड़के ने मज़दूर को आवाज़ लगायी । मज़दूर जीप से तमाम पैकेट निकालने लगा और उसमे से कुछ पैकेट रेडीमेड थालियों के भी थे । दुखिया को चक्कर आ गया , पिछले एक हफ्ते से हाड़तोड़ मेहनत करके उसने पत्तल बनाये थे । इतने में लड़का उसके पास आया और बोला " अरे दुखिया , अब तो पत्तल का ज़रूरत नहीं है , काहें बइठे हो इहाँ "। दुखिया उसके पैर पर गिर गया और बोला " मालिक , आप ही के इहाँ के लिए बनाया है , आप नहीं लोगे तो हम कहाँ ले जायेंगे इसको "।

लड़के ने अनिच्छा से पत्तल रखवा लिया , साथ में ये भी कह दिया कि अगर जरुरत पड़ी तो इस्तेमाल होगा , नहीं तो वापस ले जाना । दुखिया भारी कदमों से वापस चल पड़ा , छोटका पीछे पीछे था । रात में गाँव में शादी की धूम थी , चारो तरफ बत्तियों की चकाचौंध थी लेकिन दुखिया के हिस्से का उजाला शहर के रेडीमेड थालियों ने छीन लिया था ।

.

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on June 2, 2015 at 2:46pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , पुनः प्रयास करता हूँ इसको और बेहतर करने का | मार्गदर्शन करते रहें इसी तरह, सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2015 at 1:41pm

लड़के ने अनिच्छा से पत्तल रखवा लिया , साथ में ये भी कह दिया कि अगर जरुरत पड़ी तो इस्तेमाल होगा , नहीं तो वापस ले जाना । दुखिया भारी कदमों से वापस चल पड़ा , छोटका पीछे पीछे था । रात में गाँव में शादी की धूम थी , चारो तरफ बत्तियों की चकाचौंध थी लेकिन दुखिया के हिस्से का उजाला शहर के रेडीमेड थालियों ने छीन लिया था ..

उपर्युक्त भाग को और सशक्त करना था, आदरणीय. एक बहुत ही अच्छे प्लॉट को बाँधा है आपने .. दिल से बधाई लें.

Comment by विनय कुमार on June 1, 2015 at 10:53pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जान गोरखपुरी जी ..

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 1, 2015 at 10:48pm

बहुत ख़ूब! सुन्दर लघुकथा पर बधाई भाई! विनय जी!

Comment by विनय कुमार on June 1, 2015 at 8:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी..

Comment by maharshi tripathi on June 1, 2015 at 8:20pm

आप की सोच को आपके छोटे भाई  का सलाम...आ. vinaya kumar singh जी |

Comment by विनय कुमार on June 1, 2015 at 1:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आप की नज़र रचना पर पड़ जाती है तो दिल को तसल्ली मिल जाती है .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 1, 2015 at 12:25pm

वाह  !

दुखिया के हिस्से का उजाला शहर के रेडीमेड थालियों ने छीन लिया था ।

.

बहुत सुन्दर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service