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सच का ओज......'जान' गोरखपुरी

२२२ /२२२ /२२

सच का ओज भरम क्या जाने
रौशनी मेरी तम क्या जाने
*
अँधियारे को झुकने वाले
इक दीये का दम क्या जाने
*
दुधिया रंग नहाने वाले
लालटेन का गम क्या जाने
*
मटई प्याल की सौंधी बातें                       मटई/मटिया (भोजपुरी)= मिट्टी
पालथीन के बम क्या जाने
*
हमको सिर्फ साकी से मतलब
और कोई मय हम क्या जाने
*
बात बात पे मुकरते हैं जो
क्या होती है कसम क्या जाने
*
क्या है ‘जान’ बशर का मजहब
गो ये दैरो हरम क्या जाने

***************************************
मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
***************************************

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 29, 2015 at 2:33pm

आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सरजी! आपकी टिप्पणी से मनोबल बहुत ऊँचा हुआ !आगे से और तत्पर होकर,रचनाओं को और अधिक समय देने का प्रयास करूँगा!!हार्दिक आभार आदरणीय इसी प्रकार स्नेह व् मार्गदर्शन बनाए रखें!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 8:14pm

आज मन खुश है, भाई.

हमको सिर्फ़ है साकी से काम .. . इस एक मिसरे को छोड़ दें तो इस ग़ज़ल में फेलुन फेलुन .. फ़ा  की रवानी है. मैं भी आदरणीय नीलेश भाई के कहे का अनुमोदन करता हूँ.

शुभेच्छाएँ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:21pm

बात बात मुकरने वाले

क्या होती है कसम क्या जाने...बहुत बढ़िया 

दुधिया रंग नहाने वाले

लालटेन का गम क्या जाने.. जान जी ये दो शेर तो मुझे बेहद पसंद आये ,,इस लाजबाब ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2015 at 12:11pm

प्रिय जान !

 आपकी  गजल् पढी . मुझे यह कहने में संकोच  नहीं  कि नवोदितो में आप सचमुच प्रतिभावान हैं I  इसलिये आप  परिश्रम करते रहे . सस्नेह .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 9:32am

आत्मीय प्रसंशा हेतु हार्दिक आभार आ० मोहन सेठी 'इंतजार' सर!सादर

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 28, 2015 at 8:52am

क्या बात है ...रौशनी मेरी तम क्या जाने....उम्दा ग़ज़ल के लिये बधाई 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:13am

आ० समर सर! गजल पर आपकी दाद पाकर आशान्वित हुआ!हार्दिक आभार!आ० स्नेह बनाये रखें!सादर

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:11am

बहुत बहुत आभार आ० मिथिलेश सर! गजल को मात्रिक भर में पुनः अवलोकन करता हूँ!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:10am

हार्दिक आभार आ० बड़े भाई केवल प्रसाद जी!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 28, 2015 at 7:09am

आ० सिखा जी हार्दिक आभार!

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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