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“ मैंने यह सब कुछ अपनी मजबूरी में किया है, जज साहब. मृतक मेरा सगा भाई ही था, उसने मेरा जीना हराम कर दिया था. धोखे से मेरी जमीन हड़प ली और मैं अपने पत्नी और बच्चों के साथ सड़क पर आ गया था. भूखों मरने की नौबत आ गई थी, साहब..” उसने अपने भाई की हत्या का गुनाह कुबूल करते हुए अदालत में अपना बयान दिया

“ लेकिन, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार तुमने अपने भाई को सुबह ५ बजे ही खेत पर, गला घोंटकर मार डाला फिर तुम दोपहर में उस लाश को खीचकर कहा ले जा रहे थे..” सरकारी वकील ने कटघरे में खड़े, अपराधी से पूछा

“ साहब!! मैंने उसे सुबह मौका देखकर मार तो डाला और भाग निकला. पर मुझे बाद में बहुत दुःख हुआ. दोपहर में धूप बहुत तेज थी, सोचा जैसा भी था, मेरा भाई ही था. मैं उसे छाँव में घसीट कर ले जारहा था, तभी गाँव वालों ने मुझे...”

 

   जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by savitamishra on May 14, 2015 at 10:42pm

खून का रिश्ता मर क्या कभी ...बहुत बढ़िया कथा

Comment by Shubhranshu Pandey on May 14, 2015 at 10:08pm

आदरणीय जितेन्द्र जी,  

मानव चरित्र के एक गूढ़ स्वभाव को लाया है.

हिंसा का सहारा ले कर अपने सारे जुल्मों का निदान करना चाहता था, साथ ही साथ निश्प्राण शरीर की सुरक्षा का खयाल उस हिंसा के उबाल के बाद आया. मि. जैकेल और हाइड एक साथ ही रह्ते हैं. उपयोग करने के उपर निर्भर करता है...

सादर.

Comment by मनोज अहसास on May 14, 2015 at 2:34pm
मानव स्वभाव की विचित्रता का सटीक वर्णन
हार्दिक बधाई सर
Comment by kanta roy on May 14, 2015 at 12:32pm
भाई का भाई होना साबित कर गया ..... रिश्ते चाहे लाख द्वेष की खोल ओढ ले लेकिन मन के कोने में रिश्ता पडा ही रहता है अपने मूल रूप में सदा .....मानव मन की मनोदशा का यथार्थ और सटीक चित्रण .... सार्थक लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी ।
Comment by Sudhir Dwivedi on May 14, 2015 at 11:35am

मानव स्वभाव भी एक गूढ़ पहेली रही है सदा से | कथा के माध्यम से खूब चित्रण किया है आपने इसका आ. जितेन्द्र जी | सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 14, 2015 at 11:13am
मनुष्य के स्वभाव और व्यवहार को समझना सदैव ही कठिन रहा है, प्रस्तुत रचना इसी और संकेत करती है, एक सशक्त अभिव्यक्त्ति, प्रिय जीतेन्द्र जी , सादर।

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