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प्यास ( लघुकथा )

उस तंग कमरे में ,सालों से बीमार चल रहा हरिया रोज मृत्यु की कामना किया करता था I पड़ा पड़ा कभी बहू कभी बेटा ,नाती पोतों को मिलने की गुहार लगाता रहता I उसके जर्जर ,क्षीण होती काया सबके लिए दुखदायी होती जा रही थी ,स्वयं उसके लिए भी I आखिर कार मृत्यु को उस पर दया आ ही गयी ,आ गयी उसको एक दिन लिवा जाने !! लेकिन यह क्या ? दिन रात मृत्यु की कामना करने वाला हरिया ,साक्षात उसे सामने देख गिड़गिड़ाया -" तनिक छोटका बिटवा को देख लेने दियो ,फिर चलत हैं " I 

मृत्यु भी मुस्कुरा पड़ी पल भर को -' सच !! जीवन की प्यास कभी नही बुझती !! '

.

मीना पाण्डेय
बिहार
मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by meena pandey on May 6, 2015 at 9:16pm

आभार आ Ravi prabhakar जी 

Comment by Ravi Prabhakar on May 5, 2015 at 8:30am

अच्‍छी लघुकथा आदरणीय मीना जी । पुरातन बोध कथा स्‍मरण करवा दी आपकी इस लघुकथा ने । आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 4, 2015 at 10:06pm

सच तो यही है मीना जी ,जीवन की प्यास कभी नहीं बुझती बहुत बढ़िया लघु कथा ,बधाई आपको 

Comment by meena pandey on May 4, 2015 at 3:13pm

आभार आ   लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 4, 2015 at 8:31am

अपने परिवार के प्रति मोह अंतिम समय तक बना रहता  है | सुंदर लघु कथा  के लिए बधाई 

Comment by meena pandey on May 3, 2015 at 11:17pm

आभार आ सौरभ पाण्डेय जी   

Comment by meena pandey on May 3, 2015 at 11:15pm

आभार आ Dr Ashutosh mishra  जी 

Comment by meena pandey on May 3, 2015 at 11:13pm

आभार आ ओम प्रकाश क्षत्रिय जी 

Comment by Omprakash Kshatriya on May 3, 2015 at 9:09pm

सच !! जीवन की प्यास कभी नही बुझती !! 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2015 at 5:08pm

आदरणीया मीना जी इस सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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