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अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है ( गिरिराज भंडारी )

अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है

********************************* 

मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है

अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी

तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं

कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे

दुनिया को

 

लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,

इस उजाले की पहुँच बाहरी है

किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी

भ्रम में न रहें

 

कानून अगर सही सही पाले जायें

तो, ये व्यवस्था देते हैं

भय देते हैं , तोड़े जाने से सजा का

शारीरिक कष्टों का भय

लेकिन ,

समरथ के लिये तो गोसाईं जी ने कह ही दिया है

आप भ्रम में न रहें

 

लेकिन आपको जानना चाहिये कि ,

इनकी पहुँच आपकी सोच तक नहीं है ,

संस्कारों तक तो और भी नहीं

 

आज़ादी एक ज़हरीली दवा है

स्वाद में अच्छी है

मात्रा संतुलित हो तो फायदा भी बहुत करती है

असंतुलन के नुक्सान भी हैं

 

मै चाहता हूँ दवा फायदा करे

लेकिन कैसे ?

दवा स्वाद में मीठी जो है

************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित  

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Comment

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Comment by Samar kabeer on April 29, 2015 at 6:39pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,अतुकांत कविता के बादशाह हैं आप,जटिल समस्याओं को बहुत अच्छे ढंग से पेश करने में आपको कमाल हासिल है,सुन्दर प्रस्तुति हेतु दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2015 at 8:48am

बहुत खूब आदरणीय 

मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है

अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी

तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं

कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे

दुनिया को
बहुत खूब 

Comment by shree suneel on April 29, 2015 at 8:07am
/कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते हैं
भय देते हैं...
/लेकिन आपको जानना चाहिये कि ,
इनकी पहुँच आपकी सोच तक नहीं है ,
संस्कारों तक तो और भी नहीं...
/आज़ादी एक ज़हरीली दवा है
स्वाद में अच्छी है.. . आदरणीय गिरिराज सर, गंभीर एवं महत्वपूर्ण प्रस्तुति है. बधाई आपको.
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 6:50am

गहरे प्रशन एवं दार्शनिक रंग लिये बढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई ...सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 28, 2015 at 9:54pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही उम्दा कविता हुई है.हार्दिक बधाई निवेदित है.  समरथ को नहीं दोष गुसाई को बड़ी ही अच्छी तरह प्रयोग किया है 

एक विचार आया है, अतुकांत का शिल्प बिलकुल नहीं जानता फिर भी विचार आ गया तो साझा कर रहा हूँ -

कानून अगर सही सही पाले जायें

तो, ये व्यवस्था देते हैं

भय देते हैं , तोड़े जाने से सजा का ----------> भय देते है, तोड़े जायें तो सजा का 

शारीरिक कष्टों का भय

ये पंक्तियाँ कमाल की हुई है- 

आज़ादी एक ज़हरीली दवा है

स्वाद में अच्छी है

मात्रा संतुलित हो तो फायदा भी बहुत करती है

असंतुलन के नुक्सान भी हैं

 

मै चाहता हूँ दवा फायदा करे

लेकिन कैसे ?

दवा स्वाद में मीठी जो है


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 9:31pm

आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आदरणीय डॉ विजय शंकर जी की विवेचनात्मक टिप्पणी के पश्चात कहने के लिए बहुत कुछ नहीं रह जाता, मैं आपकी इस प्रस्तुति पर बधाई प्रेषित करने के साथ साथ डॉ विजय शंकर जी की पाठकधर्मिता को नमन करता हूँ.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 28, 2015 at 7:45pm
क्या बात है, स्वतंत्रता की इतनी विशद व्याख्या , स्वतंत्रता की दवा मीठी है , मिठास स्वयं में नियंत्रित न हो तो स्वतः जहर ( मद्धम ) बन जाती है , वैसे जो चित्र आपने प्रस्तुत किया है वह उन पर सटीक बैठता है जिन्हें बिना किसी परिश्रम के स्वतंत्रता मिल गई हो , स्वंत्रता में मुफ्त ( free ) का भाव तो कहीं है ही नहीं , स्वंत्रता में दूसरे की स्वतंत्रता में घुसने और विघ्न डालने , हस्तक्षेप करने का भाव भी कहीं नहीं है। अधिकाँश देशों में आपको स्वतंत्रता मिली या नहीं मिली इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप दूसरे की स्वतंत्रता में किस अधिकार से हस्तक्षेप कर रहे हैं , और यह अपराध की श्रेणी में आता है , " समरथ को नही .... " गम्भीर अपराध है जिसका अभी तक हमने संज्ञान लिया ही नहीं. हमारी विवशता यह है कि हम बुराईयों से लड़ते ही नहीं , उन्हें नैसर्गिक एवं अपरिहार्य मान कर झेलते रहते हैं। ……… स्वतंत्रता हमें मिली है , उसकी स्थापना अभी हुई ही नहीं है , यकीन न हो तो किसी सरकारी दफ्तर में एक अजनबी की तरह जाइए और कहिये कि आप एक स्वतंत्र सम्मानित नागरिक हैं आपको उचित सम्मान मिलना चाहिए , देखिये , एक अनुभव होगा।
…… विषय बड़ा है , सम्प्रति आपको इस पर रचना प्रस्तुत करने , वह भी इतनी सार्थक , बहुत बहुत बधाई , सादर।

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