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भोर के स्वर गान में 

आकर बसे तुम प्राणों में

रश्मि मुग्धा ले चली 
अनुराग सागर की तली
सीप की उच्छवांस में 
आकार बसे तुम लहर में

मौन होकर रात भागी 
तारकों को विरक्ति लागी 
आकाश के सोपान में 
आकर बसे तुम भानु में

प्रेम के संतृप्त मन में 
नेह से डोले बदन में 
चारणों की मधुर धुन में 
आकर बसे तुम शब्दों में

नीद के विश्वास में 

अभिलाष के अवकाश में

हृदय की सुस्मित पुलकन में 
आकर बसे तुम ध्यान में

शलभ के उन्माद में 
दीप के अवसाद में 
मलय की तीखी खुनक में 
आकर बसे तुम वेग में

भोर के स्वर गान में 
आकर बसे तुम प्राणों में ।

कल्पना मिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by kalpna mishra bajpai on April 23, 2015 at 9:32pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर मैं आप से सहमत हूँ / मुझे लगता है कि दोनों तरीके से लिख सकते हैं । जब हम कहते है कि मेरे प्राणों में हलचल है । मेरे प्राण में हलचल है । कौन सा वाक्य सही होगा ???

Comment by kalpna mishra bajpai on April 23, 2015 at 9:23pm

आप सभी आदरणीय सुधि जनों का हार्दिक आभार /सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 12:42pm

आ० कल्पना जी

गीत बहुत ही मधुर है . आपको बधाई ,  एक बात कहूँगा अकसर लोग प्राणों का प्रयोग करते हैं पर क्या किसी के शरीर में एक से अधिक् प्राण  होता है . नहीं न , तब 'आकर बसे तुम प्राण में' क्यों न लिखें . सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 22, 2015 at 11:28am

प्रेम के संतृप्त मन में 
नेह से डोले बदन में 
चारणों की मधुर धुन में 
आ बसे तुम शब्दों में | ---- बहुत सुंदर भावों की प्रस्तुति के लिए बधाई  आदरणीया कल्पना जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 22, 2015 at 10:03am

बहुत सुंदर, आदरणीया कल्पना दीदी. कविता में सहज सादगीपूर्ण भाव बहुत अच्छे लगे. बधाई स्वीकारें

Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 10:56am
मोहतरमा कल्पना जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 21, 2015 at 4:50am
सुन्दर स्तुति , आदरणीय कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी , बधाई , सादर।

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