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जिये जा जिये जा (एक बहुत छोटी बह्र पर ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२

भलाई किये जा

बुराई लिये  जा

 

उन्हें बाँट अमृत

जहर खुद पिये जा

 

तेरे पास जो है

दिये जा दिये जा

 

उन्हें तू उठा दे 

मगर खुद निये जा  

 

जवानी लुटा दे

बुढ़ापा सिये जा

 

जमाना ख़रा है

भरोसा किये जा

 

यही जिन्दगी है

जिये जा जिये जा

-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2015 at 9:03pm

कृष्ण मिश्रा जी,इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया|  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2015 at 9:02pm

आ० उमेश कटारा जी ,तहे दिल से आपका शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2015 at 9:01pm

आ० सौरभ जी,अर्थ समझने की कोशिश कर रही हूँ ..कहीं अर्थ का अनर्थ न  निकाल लूं  इस लिए  बता दीजिये  आपने क्या लिखा है :-))))

खैर अर्थ तो पता चल ही जाएगा तब तक के लिए हार्दिक आभार |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 13, 2015 at 8:53pm

छोटी बहर में गज़ल कहना सच में आसान बात नही!सुन्दर गजल पर हार्दिक बधाई आदरणीया!

Comment by umesh katara on April 13, 2015 at 7:23pm

वाह वाह अच्छी गजल के लिये बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 13, 2015 at 1:19pm

आप्नी आमार ऐक्टु गोप्प ’निये’ जाउ, आदरणीया, जे एइ खाने प्रोजुक्तो ’निये’ टा खूब भालो शब्दो होबे ना..

:-))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2015 at 9:41pm

जितेन्द्र भैया ,आपको ये ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभार आपका |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 12, 2015 at 9:12pm

यही जिन्दगी है

जिये जा जिये जा.....बहुत अच्छी लगी , आपकी गजल. दीदी . बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2015 at 8:05pm

आ० श्री सुनील जी,आपका तहे दिल से शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 12, 2015 at 8:04pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी ,इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया|  

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