For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चंचल नदी

बाँध के आगे

फिर से हार गई

बोला बाँध

यहाँ चलना है

मन को मार, गई

 

टेढ़े चाल चलन के

उस पर थे

इल्ज़ाम लगे

उसकी गति में

थी जो बिजली

उसके दाम लगे

 

पत्थर के आगे

मिन्नत सब

हो बेकार गई

 

टूटी लहरें

छूटी कल कल

झील हरी निकली

शांत सतह पर

लेकिन भीतर

पर्तों में बदली

 

सदा स्वस्थ

रहने वाली

होकर बीमार गई

 

अपनी राहें

ख़ुद चुनती थी

बँधने से पहले

अब तो सबकुछ

पूछ रही वो

रुक जाए, बह ले

 

आजीवन वो

उसी राह से

हो लाचार, गई

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:27pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ. समर कबीर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:25pm
तह-द-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ, आ. शिज्जू जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:24pm
तह-द-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. सौरभ जी, आपकी विस्तृत टिप्पणी से मैं आश्वस्त हुआ कि मैं जो कहना चाहता था वो कह सका और मेरा कहा पाठकों तक पहुँच सका। बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:21pm
बहुत बहुत धन्यवाद आ. विजय शंकर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:20pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ. मिथिलेश जी। अगर ये नवगीत आपको नवगीत लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है तो इस नवगीत का लिखना सार्थक हो गया।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:16pm
बहुत बहुत शुक्रिया सुनील प्रसाद जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2015 at 12:16pm
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ प्राची ने। आपकी इस टिप्पणी से नवगीत को कई अर्थ मिल गये। बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2015 at 11:33am

आदरनीय धर्मेन्द्र भाई , नारी की मज़बूरियों को खूब  शब्द  मिले हैं , हार्दिक बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 9, 2015 at 9:59am

अपनी राहें

ख़ुद चुनती थी

बँधने से पहले

अब तो सबकुछ

पूछ रही वो

रुक जाए, बह ले------वाह इन पंक्तियों ने बहुत आकर्षित किया  नारी जीवन को नदी के बिम्ब से बहुत ख़ूबसूरती से उभारा है बहुत ही सुन्दर नवगीत लिखा आपने आ० धर्मेन्द्र जी हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on April 8, 2015 at 6:02pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति ...बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service