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चांदनी रात है //// हिन्दी गजल (एक प्रयास)

   (212 212)

मुतदारिक मुरब्बा सालिम

चांदनी रात है

वाह क्या बात है I

रात का तम गया

अब धवल प्रात है I

मौन वंशी लिए

वह खड़ा तात है I

पुष्प के बाण से

काम का घात है I

राग-अनुराग की

दिव्य बरसात है I

कामना है मधुर

भाव अवदात है I

नन्द का लाडला

नेह  निष्णात  है I

आपगा तीर पर

राधिका स्नात है I

नेह ‘गोपाल’ का

सर्व विख्यात है I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:47pm

आ० समर कबीर साहेब

आप जसे गजलगो से संस्तुति मिलना आनंद की बात है . सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:45pm

आ० विजय सर !

आपके स्नेह को सादर प्रणाम .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:45pm

आ० विजय सर !

आपके स्नेह को सादर प्रणाम .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:44pm

आ० हरिप्रकाश जी

सादर अनुग्रहीत .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:42pm

आ० नीलेश जी

आपकी संस्तुति बहुत मायने रखती है . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:41pm

आ० श्याम नारायण  वर्मा जी

आपका सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 12:40pm

आ० वामनकर जी

आपका ऋणी हूँ. सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 7:48pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी.

वाह वाह क्या बात है. आनंद आ गया .हार्दिक बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 4:42pm

लाजव़ाब गज़ल!अभिनन्दन आदरणीय!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 31, 2015 at 3:26pm

बहुत सुन्दर रचना .....आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. ....मेरी और से बधाई स्वीकार करे.

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