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"देख बड़ी बहू तूने छोटी बहू को लेकर डाॅक्टरो के बहुत चक्कर लगा लिये, इससे कुछ नही होगा?" हस्पताल से देवरानी का चेकअप कराकर रमा घर लौटी ही थी कि सासु माँ शुरू हो गयी। "अब तो स्वामी जी की दया हो तो ही छोटी की गोद में किलकारी गूँजेगी।" सासु माँ का बोलना जारी था।
"कल ही स्वामीजी से बात करके ले जाऊँगी इसे उनके आश्रम में 'सप्त रात्रि' की पूजा के लिये।"
"बड़ी बहू अगर तू भी पूजा छोड़ बीच में नही भाग आयी होती तो उन के आर्शीवाद से आज तेरी गोद भी...........।
"बस कीजिये माँजी।" रमा पुरानी बाते याद कर क्रोध में आ गयी। "अब कहीं नही जायेगी छोटी, अब जाना है तो इसके पति को अपने चेकअप के लिये। छोटी को अपनी संतान चाहिये न कि समाज को दिखाने के लिये वंश चलाने वाली आर्शीवादी औलाद।"

"विरेन्दर वीर मेहता"
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 9:02pm

आदरणीय वीरेंदर जी अच्छी लघुकथा है हार्दिक बधाई 

लगता है आपने लघुकथा जल्दबाजी में पोस्ट कर दी है, मात्राओं की त्रुटी कथ्य के प्रभाव को कम कर रही है.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 24, 2015 at 8:56pm

''छोटी को अपनी संतान चाहिये न कि समाज को दिखाने के लिये वंश चलाने वाली आर्शिवादी औलाद।"

वाह! जबरदस्त  चोट की है आपने लघुकथा के माध्यम से रूढियों पे!ढेरों बधाई आ० वीरेन्द्र जी!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 24, 2015 at 8:50pm

आ० वीरेन्द्र  जी

सुन्दर कथा . सादर ,.

Comment by विनय कुमार on March 24, 2015 at 8:45pm

बहुत सुन्दर लघुकथा , इस अन्धविश्वास की बलिवेदी पर पता नहीं कितनी मासूम चढ़ जाती हैं | बधाई इस रचना के लिए..

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 24, 2015 at 8:38pm
घोर अनैतिक अंधविश्वास को ध्वस्त करती रचना , बधाई , आo वीरेंदर जी , बधाई , सादर।

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