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‘आस्था’ शापिंग मॉल (लघु कथा)

“इस सन्डे कहाँ पार्टी करें कोमल”? नील  ने पूछा. “यू लाइक  मॉल चलते हैं” “अरे यार, फिर वहीँ.... बोर हो गए हमेशा मॉल मॉल  में जाते कोई नई जगह... “फिर उस भूतिया महल में चलें? है हिम्मत’? बीच में ही बात काटती हुई आस्था बोली| “ना बाबा ना मैं तो नहीं जा सकती तू जा सकती है”?

“मैं भूतों में विश्वास नहीं करती हम आज के युग में जीते हैं क्या पुराने लोगों जैसी  घिसी पिटी बातें  करते हो  और फिर हमारे साथ विश्वास भी तो है उस पर विश्वास करना चाहिए  सब भूतों को ठिकाने लगा देगा  हाहाहा”.. ....

“ठीक है हम बाहर रहेंगे तू ही जाना’ विश्वास ने कहा . ओके.. ओके ..  हम चारों  में से  जो जा सकता है जाकर दिखाए उसकी  अगली ट्रीट हम तीन देंगे  डन” कोमल ने शर्त रखी.  डन!!....सबने एक स्वर में कहा.

अगले सन्डे देर रात तक इन्तजार करते करते उनके माँ बाप पुलिस को सूचना देने ही जा रहे थे कि थाने से  उन सबको तुरंत  आने के लिए फोन आया.

आस्था की लाश के पास तीनों दोस्त फफक-फफक कर रो रहे थे, फिर उन्होंने पूरी घटना बताई कि आस्था भूतिया महल में गई तो बहुत देर तक वापस नहीं आयी आधे घंटे इंतजार कर उन तीनों ने पुलिस को फोन किया पुलिस अन्दर जाकर आस्था की डेड बॉडी लेकर बाहर आई किन्तु पुलिस को अन्दर कोई सुराग नहीं मिला|

 पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामूहिक बलात्कार के बाद गला घोटकर हत्या की पुष्टि हुई घटना को पंद्रह दिन हो गए पब्लिक के दबाव में केस सी.बी. आई के पास गया|

एक हफ्ते बाद...... आस्था के उन तीनों दोस्तों के खातों में एक-एक लाख रुपया क्रेडिट होते ही बलात्कारी भूत कब्रों से निकलकर सलाखों के पीछे आये.

फिर कुछ महीनों के पश्चात् उस भूतिया महल के आगे एक बोर्ड लग गया “आस्था” शोपिंग मॉल  फाउनडेशन’   

.

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 9:06pm

आ० श्याम  नारायण वर्मा जी,आपका बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2015 at 6:52pm

बहुत सुंदर और मर्म को छू जाती लघुकथा. असंवेदनशीलता तो पूरे चरम पर है. कहीं, कब , किस पर भरोशा करें या न करें.शायद  बस! यही दुविधाएं सारे रिश्ते बदलती जा रही है. आपको प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 14, 2015 at 4:56pm

आजकल के सामाजिक परिवेश को,दिखाती शानदार लघुकथा..!!,हाईटेक होती अतिवादी जिंदगी में अतिउत्साह,अतिविश्वास,अतिउन्माद.....आज की गंभीर समस्या के रूप में उभरा है!! 'यूज न थ्रो' की तरह होते रिश्ते,और हर तरह से हर एक जगह पर बस अपना मतलब साधना ही आदमी का मकसद होता जा रहा है!

उम्दा लघुकथा पर बहुत बहुत बधाई!! अभिनंदन आदरणीया!!

Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 3:58pm
बहुत-बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 10:35am

आ० हरि प्रकाश दूबे जी,कहानी की गहराई तक पंहुचकर किया आपके द्वारा लघु कथा का अनुमोदन हर्षदायी है, बहुत बहुत आभार आपका .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 10:06am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,बहुत मार्मिक लघुकथा है, विशेषकर इसका भाव वर्तमान काल की सच्चाई है, आस्थायें मर रहीं है ,पैसा क्रेडिट हो रहा है और फाउनडेशन बनाई जा रही है वो भी शोपिंग मॉल  फाउनडेशन   ,ह्रदय विदीर्ण हो गया, सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई आपको ! सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 10:03am

आ० खुर्शीद भैय्या ,आपका बहुत- बहुत आभार .

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:59am

आदरणीया राजेश दीदी ,लघुकथा के लिए आपको सादर बधाई प्रेषित है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 9:46am

शिज्जू भैय्या ,आपकी समीक्षा पढ़कर लेखन के प्रतिआश्वस्त हुई जो सन्देश लघु कथा के द्वारा देना चाहती थी वो पाठकों तक सीधे पंहुच रहा है समझने वाली बात है कि आस्था मॉल का फाउन्डेशन किस प्लानिंग के तहत बना और सफल भी हुआ .

आपका बहुत- बहुत आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2015 at 9:42am

आ० डॉ० विजय शंकर जी आपने अपने सुन्दर शब्दों में लघु कथा का विश्लेष्ण किया बहुत अच्छा लगा हार्दिक आभार आपका | 

कृपया ध्यान दे...

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