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कोकून :हरि प्रकाश दुबे

अपने कोकून को

तोड़ दिया है मैंने अब

जिसमे कैद था, मैं एक वक़्त से

और समेट लिया था अपने आप को

इस काराग्रह में ,एक बंदी की तरह !

निकल आया हूँ बाहर , उड़ने की चाह लिए

अब बस कुछ ही दिनों में, पंख भी निकल आयेंगे

उड़ जाऊंगा दूर गगन में कहीं , इससे पहले की लोग

मुझे फिर से ना उबाल डालें , एक रेशम का धागा बनाने के लिए

और उस धागे से अपनी , सतरंगी साड़ियाँ और धोतियाँ बनाने के लिए !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

“मौलिक व अप्रकाशित “

Views: 798

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 6:11pm

आदरणीय मोहन सेठी जी , रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 6:09pm

आदरणीय इंजी.गणेश जी “बागी” सर एवम् आदरणीय योगराज सर , रचना को स्वीकृति प्रदान करने एवं मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर। 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 6:04pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 6:00pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी, रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 5:57pm

भाई महर्षि त्रिपाठी जी इस रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 5:53pm

आदरणीय नीरज जी, रचना पर समर्थन के लिए आपका आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 5:51pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, इस रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 13, 2015 at 5:21pm

क्या बात है! जहा न पहुचें रवि वहा पहुचे कवि! लाजवाब कृति पर ढेरों बधाइयाँ आदरणीय!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:51am

बिम्बों एवं प्रतीकों का अलग सा प्रयोग है बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 5:42am

इस रेशमी और गहरे भाव लिये रचना के लिये बधाई ...सादर 

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