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तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा

सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये

 

चली तंज़  की लातादाद सब हवाएँ  मगर 

नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by kalpna mishra bajpai on March 8, 2015 at 4:57pm

हटाये जो काँटे तो रास्ते सुधरते गये दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये.............. बहुत ही सुंदर कहा आप ने दी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2015 at 1:04pm

आ0 राजेश दीदी , महिला दीवश की हार्दिक शुभ कामनाएँ . इस अवसर के उपयुक्तग़ज़ल के लिए कोटि कोटि बधाई .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:36am

आदरणीया राजेश कुमारी जी,  बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल  है ,प्रेरणादायक पंक्तियाँ हैं  

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये...हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2015 at 11:19am

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये -- आदरणीया राजेश जी , बढिया गज़ल के इन दो अश आर के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 8, 2015 at 10:08am

आदरणीया राजेश दीदी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

मतला बहुत अच्छा हुआ है... ये कमाल के अशआर हुए है-

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये.... वाह 

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