For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

( अंध ) विश्वास - अतुकांत - ( गिरिराज भंडारी )

ओ भाई ,

नहीं , आपसे नहीं , होली दिवाली वालों से नहीं

किसी भी कौम के आस्तिकों नहीं 

मै उनसे मुखातिब हूँ  

अंध श्रद्धा , अंध विश्वास का ढोल पीटने वाले भाइयों से   

हाँ , आपसे ही कह रहा हूँ

कितनी बार देखे हैं सर्टिफिकेट, डाक्टरी

इलाज कराने से पहले

जांचे हैं कभी ?

भेजे यूनिवर्सिटी तस्दीक करने के लिये सही है या गलत ,

फर्जी तो नहीं है  सर्टिफिकेट देखे कभी , अपनीं आँखों से

कर लिये न.... विश्वास , वही.....अंध विश्व्वास

हाँ आपसे ही कह रहा हूँ

कैसे जाना अपने यही शख्स है मेरा पिता ,

पैदा तो माँ ने किया था ,

पंद्रह इंच के थे उस समय  

न बोल सकते थे , न समझ सकते थे

माँ ने बताया न ?यही हैं आपके पिता

किये न अंधविश्वास  , माँ पर

या जाँच कराये थे , डी एन ए

कराये भी थे , तो जाँच करने वाले की विश्वसनीयता का क्या ?,

मशीन बनाने वाले का क्या ? , मशीन का क्या ?

अगर माँ किसी और की तरफ इशारा कर देती तो ?

मानते या नहीं ? मानते ही  

थोड़ा तो झाँक लेते ,

खुद के किये अंध विश्व्वासों पर  

जिस सौ रुपट्टी के ताले को अपने दरवाज़े में लगा के आप निश्चिंत  हो जाते हैं

वो क्या है , क्या कहूँ उसे मैं ,

कितना गिनवाऊँ , छोड़िये

हर चीज़ परख नली में नहीं आती , भाई साहब , समझ लीजिये

चार क्लास पढ क्या लिये , लगे समझानें

श्रद्धा ऐसी ठीक नहीं ,

ये विश्वास नहीं ये तो अन्ध विश्वास है

जाइये , जाइये किसी और मुल्क में

ये हमारा देश है

श्रद्धा का देश , विश्वास का देश  

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 5:04pm

आदरणीय महर्षि भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 5:02pm

आदरणीय विजय भाई , आपने मेरे मन की बात पूरी पूरी कह दी , रचना की सराहना के लिये और मेरे मन तक पहुँचने के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by maharshi tripathi on March 3, 2015 at 4:54pm

आ.गिरिराज जी ,,आपकी सुन्दर रचना पर ,,,आपको बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 4:48pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 4:47pm

आदरणीय सोमेश भाई , लक्ष्य सीधा है , वो सब जो आस्था, को विश्वास और श्रद्धा को विज्ञान की कसौटी मे कसना चाहते हैं , और कसते भी हैं , और खुद अपनी सहुलियत के लिये हज़ारों जगह समझौता किये बैठे है, जो उनकी ही परिभाषा से अंधविश्वास की श्रेणी में रखा जायेगा , बस ॥ रचना अगर  आपको , या किसी को भी कुछ सोचने के लिये विषय दे पाये तो बहुत है ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 4:38pm

आदरणीय शयाम नारायन भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 2:30pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर , बहुत सुन्दर सन्देश है ,जीवन में विश्वास बहुत बड़ी चीज़ है , अविश्वास ही समस्त दुर्गुणों के मूल मैं है , संशय आते ही मन भ्रमित हो जाता है , इस सुन्दर रचना पर बधाई ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 3, 2015 at 11:42am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,
आदरणीय सोमेश कुमार जी,
बहुत सुन्दर , और उस से कहीं अधिक सार्थक रचना है, जो यह शिक्षा दे रही है कि जीवन विश्वासऔर आस्था से जिया जाता है, अविश्वास या अनास्था से नहीं।
इसमें कहीं कोई रहसयवाद नहीं है , एक सच्चाई है, विशवास की सच्चाई. सच तो यह है की हम सब जीवन में घोर विश्वासवादी होते हैं , क्योंकि जीवन उसी के सहारे चलता है। याद कीजिये कितनी बार हम ट्रेन के ड्राइवर या गार्ड से मिलने जाते हैं , यह पूछने कि भैया , ठीक चलाओगे , लड़ा तो नहीं दोगे रेलगाड़ी, कितनी बार हम यह देखने जाते हैं कि लाइनमैन सही टाइम पर गाड़ी को सिगनल देगा, सड़क फाटक बंद करेगा कि नहीं, हम जिस हवाई जहाज पर जा रहे हैं उसका पायलट बहुत पी कर तो नहीं उड़ा रहा है, वह भी कितना वफादार होता है जो अपको रास्ते भर ये बताता रहता है कि हम कितनी ऊंचाई पर उड़ रहें हैं , रास्ता कितना दिख रहा है, कितना कम दिख रहा है।
सच है कि जीवन विश्वास पर ही जिया जाता है,इसे हम जितने विशवास के साथ हम स्वीकार कर लें , उतना अच्छा हो।
बहुत अच्छी प्रस्तुति है, बधाई, सादर।
Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:11am

आदरनीय इस रचना का रहस्यवाद समझ नहीं आया |वस्तुतः इसका ईशारा किस अंधविश्वास पर है |मुझे नहीं लगता आपकी रचना ढोंगियों और अंध-भक्तों का समर्थन कर सकती है ?परंतु इसके माध्यम से लक्ष्य किसे किया गया है ?इस रचना के मूलभाव समझने में सहायता दें |

Comment by Shyam Narain Verma on March 3, 2015 at 11:02am
बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service