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नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी (ग़ज़ल 'राज')

२२२२  २२२२  २२२२  २ 

शर्मिंदा आज  किसी रू की पैदाइश होगी---रूह में ह साइलेंट है  

गैरों के आगे फिर सूरत  की  नुमाइश होगी 

फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख  भरम

फिर आज किसी की किस्मत की जमाइश होगी---(आजमाइश की मात्रा गिराकर अजमाइश किया है) 

 

ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत  की खुशबू

नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी

 

हँस हँस के मिटेगी जल जल के लुटेगी रात शमा

धज्जी धज्जी दिल टूटी टूटी  ख्वाइश होगी----(ख्वाहिश को ख्वाइश लिया है ) 

 

रब तेरी इनायत के मिल जाएँ कभी दो कतरे

तहरीरों  में तेरी कोई तो  गुंजाइश होगी  

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 2, 2015 at 4:11pm

बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी गजल, आदरणीया राजेश दीदी. ह्रदय से बधाई स्वीकारें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 2:39pm

महनीया

आपकी रचना पढ़कर मेरे दिलो दिमाग पर वह  मंजर उभरते रहे जब जब मेरी बेटी का प्रदर्शन मुझे करना पडा i देखने के बाद के ' ना '  का दर्द बहुत बार हमने झेला है i बेटी ने भी झेला होगा  i पर आखिरकार  रब की इनायत के कतरे  मिल ही गए i आपकी गजल अपने आप में एक इतिहास है i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 1:16pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत ही सुन्दर रचना है ,

फिर से टूटेगा रब की रहमत का देख  भरम

शर्मिंदा आज  किसी रूह की पैदाइश होगी......वाह  

ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत  की खुशबू

नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी....खूबसूरत , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 2, 2015 at 11:12am
ज़र्रे ज़र्रे में महकेगी दौलत की खुशबू
नजरों नजरों में फिर कोई फर्माइश होगी ॥
बहुत खूब , आदरणीय राजेश कुमारी जी, बहुत बहुत बधाई, सादर।

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