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ग़ज़ल .........;;;गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२ २१२२

नीम सी कोई दवा हूँ

आदमी मैं काम का हूँ

भाग से मैं हूँ बुरा पर

शख्स लेकिन मैं भला हूँ

दो घडी रूकता ना कोई

मैं सड़क का हादसा हूँ

स्वार्थ भर को ही जरूरत

क्या मैं कोई देवता हूँ

ढूँढता हूँ अपनी मंजिल

ख़त कोई पर बेपता हूँ

गुमनाम पिथौरागढ़ी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 26, 2015 at 8:46pm

आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी सुन्दर रचना पर बधाई आपको

ढूँढता हूँ अपनी मंजिल

ख़त कोई पर बेपता हूँ....वाह !

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 8:29pm

ढूँढता हूँ अपनी मंजिल

ख़त कोई पर बेपता हूँ
वाहहहहहहहहहहहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 26, 2015 at 6:59pm
छोटी बहर सुन्दर ग़ज़ल। दिल से दाद कुबूल फरमाएं।

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