For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देह का सागर जल गया

मन का मीत मन को छल गया
आँख का पानी मचल गया

वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी
वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी
देह का सागर जल गया

पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक
पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक
समय के हाथ से सावन फिसल गया

लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी
वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी
आस का संबल गल गया

मौलिक अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 8:15pm

आदरणीय अजय भाई जी की रचनाएँ भाव स्तर पर बहुत उम्दा और चकित करने वाली होती है. इतनी सरस रचनाये आती है, कि पढ़कर हमेशा मुग्ध हो जाता हूँ, इसलिए सोचता हूँ शिल्प स्तर पर भी कसावट आ जाए तो मंच की बेहतरीन रचनाओं में से एक होगी. आशा है अजय भाई जी निवेदन में इंगित संकेतों और उनके निहितार्थ पर सकारत्मक परिणाम देंगे. सादर 

Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 7:56pm

जैसा की मिथिलेश भाई ने कहा ,रचना को कुछ और गढ़ा जा सकता है |भावनाएँ शब्दों पर बलवती हो रही हैं |शब्दों के क्रम में भी हेर-फेर की जरूरत महसूस हो रही  है |

Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 10:04am
सुन्दर भाव पूर्ण आपको बधाइयाँ
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 8:38am
मीत मन का मन को ही छल गया
आँख का पानी आँखों में ही मचल गया।
बहुत सुन्दर , आदरणीय अजय शर्मा जी, बहुत बहुत बधाई , सादर।
Comment by ajay sharma on February 17, 2015 at 10:19pm

typing mistakes ke liye sabhi gurjano se kshama chahta hoo.......

Comment by ajay sharma on February 17, 2015 at 10:06pm

bade bhai .....mithilesh ji .....bahut bahut shukriya 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2015 at 8:37pm

आदरणीय अजय भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रहना के लिये आपको बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 4:18pm

आदरणीय अजय जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करे.. रचना पर  कुछ बाते साझा करना चाहता हूँ. निवेदित है -

मन का मीत मन को छल गया 
आँख का पानी मचल गया

वो मेहन्दी हाथ की मेरे चिटक के रह गयी ........... वो मेंहदी हाथ की मेरे छिटक के रह गई 
वो मछली नेह की मेरे , तड़फ़ के रह गयी .......... वो मछली नेह की मेरे तड़प के रह गई 
देह का सागर जल गया

पराई छाँव थी , आख़िर मैं रोकता कब तक
पराया ख्वाब था , आख़िर मैं सोचता कब तक 
समय के हाथ से सावन फिसल गया.................. समय की आँख से सावन फिसल गया 

लिपट के रोटी रही , मन से मेरे प्रीत मेरी ............ लिपट के रोती रही, मन से कभी प्रीत मेरी 
वो अन्छुयी ही रही , मेरे स्वप्न की कोरी देहरी ..... वो अनछुई ही रही, कोरी, स्वप्न की देहरी 

आस का संबल गल गया................................... हृदय की आस का संबल पिघल गया 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 17, 2015 at 4:11pm

मन का मीत मन को छल गया
आँख का पानी मचल गया.......

आदरणीय अजय जी एक एक शब्द  दिल को छू जाता है, हार्दिक बधाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 17, 2015 at 3:39pm

अजय जी

लिपट के रोटी रही --- शायेद आपका आशय है---' लिपट के रोती  रही '

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
10 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
14 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service