मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,
वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।
मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...
प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम धरा हो तो बरसूंगा मैं
फिर संभालो मुझे और मेरा जलजला,
उसको झूला जो सावन का अच्छा लगा
देर तक फिर पसीना बहाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...
अब तलक संगदिल ही समझता था मैं
आज छूकर लगा तुम हो नाजुक कली,
आईने की तरह मुझको देखा करो
मन को भाये तेरा रूप ये संदली,
कृष्ण के प्रेम में डूबकर राधिका
गीत तेरे 'अतुल' गुनगुनाती रही...।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय उमेश जी, आपका बहुत—बहुत आभार
आदरणीय राम नरायन सर, कोशिश को सराहने और हौसला देने के लिए आभार आपका— सादर
आदरणीय महर्षि भाई, आपका बहुत—बहुत आभार— सादर
आदरणीय अजय भाई साहब, हौसला अफजाई और आशीष देने के लिए आभार— सादर
आदरणीय विजय शंकर सर, आशीष देने के लिए आभार। सादर— अतुल
वाह .....अद्भुत
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई , भाई अतुल जी ॥
आदरणीय अतुल कुशवाहा जी सुन्दर रचना है , बधाई प्रेषित ! सादर
अतुल जी
आपने सुन्दर भाव दर्शाए हैं i सस्नेह i
बहुत सुन्दर गीत
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