For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही..

मैं उसे देखकर मुस्कराता रहा,

वो मुझे देखकर मुस्कराती रही।
उस कहानी का किरदार मैं ही तो था,
जो कहानी वो सबको सुनाती रही।।

मैं चला घर से मुझ पर गिरीं बिजलियां
बदलियां नफरतों की बरसने लगीं,
बुझ न जाए दिया इसलिए डर गया
देखकर आंधियां मुझको हंसने लगीं,
दुश्मनी जब अंधेरे निभाने लगे
रोशनी साथ मेरा निभाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

प्यास तुमको है तुम तो हो प्यासी नदी
एक सागर को क्या प्यास होगी भला,
हां अगर तुम धरा हो तो बरसूंगा मैं
फिर संभालो मुझे और मेरा जलजला,
उसको झूला जो सावन का अच्छा लगा
देर तक फिर पसीना बहाती रही,
मैं उसे देखकर मुस्कराता...

अब तलक संगदिल ही समझता था मैं
आज छूकर लगा तुम हो नाजुक कली,
आईने की तरह मुझको देखा करो
मन को भाये तेरा रूप ये संदली,
कृष्ण के प्रेम में डूबकर राधिका
गीत तेरे 'अतुल' गुनगुनाती रही...।।  

                      मौलिक व अप्रकाशित

Views: 844

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:41pm


आदरणीय उमेश जी, आपका बहुत—बहुत आभार

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:40pm

आदरणीय राम नरायन सर, कोशिश को सराहने और हौसला देने के लिए आभार आपका— सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:39pm

आदरणीय म​हर्षि भाई, आपका बहुत—बहुत आभार—  सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:38pm


आदरणीय अजय भाई साहब, हौसला अफजाई और आशीष देने के लिए आभार— सादर

Comment by atul kushwah on February 20, 2015 at 10:37pm

आदरणीय विजय शंकर सर, आशीष देने के लिए आभार। सादर— अतुल

Comment by Gopal Maurya on February 17, 2015 at 2:00am

वाह .....अद्भुत


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:07pm

सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई , भाई अतुल जी ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:09am

आदरणीय अतुल कुशवाहा जी सुन्दर रचना है , बधाई प्रेषित ! सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 7:29pm

अतुल जी

आपने सुन्दर भाव दर्शाए हैं i सस्नेह i

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 7:20pm

बहुत सुन्दर गीत

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
10 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service