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ग़ज़ल - चींटियों को देखना तुम

2122 2122 2122 212

होंठ पर अटकी सदा की लर्ज़िशें* क्या होती हैं?
छोड़ दें जब साथ अपने, गर्दिशें क्या होती हैं?

आपने दिल तोड़ डाला खेलकर जज़्बात से,
मेरे टूटे दिल से पूछो, ख़्वाहिशें क्या होती हैं?

क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!
बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?

छूटने की, मौत से, होती हैं सौ गुंजाइशें,
ज़िंदगी से बचने की गुंजाइशें क्या होती हैं?

दो दिलों में प्यार होना सर्द बूँदों के तले,
इश्क़ वालों को पता है, बारिशें क्या होती हैं?

की हुई कोशिश अगर तुमको बहुत ज़्यादा लगे,
चींटियों को देखना तुम कोशिशें क्या होती हैं?

© यमित पुनेठा 'ज़ैफ़'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 10:37am

क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!
बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?----बहुत सुन्दर संदेशपरक शेर 

की हुई कोशिश अगर तुमको बहुत ज़्यादा लगे,
चींटियों को देखना तुम कोशिशें क्या होती हैं?--वाह बहुत खूब 

अच्छी ग़ज़ल हुई है यमित जी बधाई आपको 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 11, 2015 at 8:13pm

आदरणीय यमित पुनेठा 'ज़ैफ़' साहब ...क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!
बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?.......बहुत खूब , शानदार प्रस्तुती , बधाई !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 11, 2015 at 2:23pm

आदरणीय यमित जी ..इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई 

आपने दिल तोड़ डाला खेलकर जज़्बात से,
मेरे टूटे दिल से पूछो, ख़्वाहिशें क्या होती हैं?......वाह 
क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!
बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?.......बिलकुल सही कहा है आपने 
की हुई कोशिश अगर तुमको बहुत ज़्यादा लगे,
चींटियों को देखना तुम कोशिशें क्या होती हैं?....अच्छा संदेश    

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 11, 2015 at 1:44pm

आदरणीय

प्रस्तुति सराहने योग्य है i सादर i

Comment by khursheed khairadi on February 10, 2015 at 11:35pm

की हुई कोशिश अगर तुमको बहुत ज़्यादा लगे,
चींटियों को देखना तुम कोशिशें क्या होती हैं?

आदरणीय अमित जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2015 at 11:38am

आ. यमित भाई अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 1:01am

प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by somesh kumar on February 9, 2015 at 10:30pm

क्यों हुई घर में लड़ाई, ये बड़ों से पूछिये!
बच्चों से मत पूछिये के रंजिशें* क्या होती हैं?

अच्छी कोशिश की है आप ने ,उम्मीद है मंच के उस्ताद आपको जल्द ही मार्गदर्शन देंगे |

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