For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ ..... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

22--22--22--22--22--22--22--2

----------------

हँसते - हँसते  रो  लेता  हूँ,   रोते - रोते  हँसता  हूँ

कोई मुझसे  ये मत पूछो आखिर क्यों  मैं  ऐसा हूँ

 

आईने-सी  शक्ल  बना कर  इक नुक्कड़ पर बैठा हूँ

कितने उजले,  कितने काले, चेहरे गिनते रहता हूँ

 

ऐसा होगा,  वैसा होगा,   आज  हुकूमत   बदलेगी

अपनी तो औकात  ज़रा-सी, सबकी बातें सुनता हूँ

 

दिल का मतला, दर्द काफिया, छोटी बह्र है जीवन की

सिर्फ अक़ीदत के लफ्जों से, सादी गज़लें लिखता हूँ

 

गम की दुनिया अपने भीतर, यारां ऐसे  कैद न कर

अपना गम  मुझको बतला दे, मैं  भी  तेरे  जैसा हूँ

 

सूरज, चाँद, सितारे, लोरी,  खेल-खिलौने  छूट  गए

फिर से ये सब मुझे दिलाओ  मैं  भी छोटा बच्चा हूँ

 

घर का ये आँगन लगता है जनम-जनम का प्यासा है

जब भी आता-जाता घर में, पाँव  भिगोकर चलता हूँ

 

दिल की बाते आज सितारों को बतला के चैन मिला

पलकों से बादल-सा उतरा,  खूब झमाझम बरसा हूँ

 

-------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------

Views: 1459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 14, 2015 at 1:45am

आदरणीय खुर्शीद सर के मार्गदर्शन पश्चात् ग़ज़ल सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 10:06pm
सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उमेश जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 7:49pm
आदरणीय उमेश कटारा जी सकारात्मक प्रतिक्रिया औरसासराहा के लिए हार्दिक आभार।र
Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 6:10pm

घर का ये आँगन लगता है जनम-जनम का प्यासा है

जब भी आता-जाता घर में, पाँव  भिगोकर चलता हूँ
वाहहहहहहहह 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 12:57pm
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया और स्नेह मिलता है तो रचनाकर्म को बहुत बल मिलता है। हृदय से आभार। नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 12:55pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी ग़ज़ल के अनुमोदन पाकर अच्छा लगा। धन्य हुआ।सकारात्मक प्रतिक्रिया से लिखना सार्थक हुआ। हृदय से आभारी हूँ। नमन
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 11:38am

दिल का मतला, दर्द काफिया, छोटी बह्रे जीवन की

सिर्फ अक़ीदत के लफ्जों से, सादी गज़लें लिखता हूँ

 

गम की दुनिया अपने भीतर, यारां ऐसे  कैद न कर

अपना गम  मुझको बतला दे, मैं  भी  तेरे  जैसा हूँ

दिल की बाते आज सितारों को बतला के चैन मिला

पलकों से बादल-सा उतरा,  खूब झमाझम बरसा हूँ

    बेहतरीन मिथिलेश जी i आपको  सादर बधाई  i

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 12, 2015 at 10:29am

आईने-सी  शक्ल  बना के  इक नुक्कड़  पे  बैठा हूँ

कितने उजले,  कितने काले, चेहरे गिनते रहता हूँ------गिनता करलें ----बहुत ही उम्दा शेर 

गम की दुनिया अपने भीतर, यारां ऐसे  कैद न कर

अपना गम  मुझको बतला दे, मैं  भी  तेरे  जैसा हूँ------बेहद  खूबसूरत शेर 

दिल की बाते आज सितारों को बतला के चैन मिला

पलकों से बादल-सा उतरा,  खूब झमाझम बरसा हूँ---दिल छू गया शेर 

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई ,देर से पढने का खेद है 

ढेरों दाद कबूलिये मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:28am

 ग़ज़लों में आपके सुझाये  हिंदी के अष्टक नियम वाकई कमाल के है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 12:07am

आदरणीय खुर्शीद सर, आपके मार्गदर्शन अनुसार शीघ्र संशोधन करता हूँ. सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service