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इश्क की हद से, गुज़र कर देखा...

इश्क की हद से गुज़र कर देखा,

जीते जी हमने तो मर कर देखा।

राह में तेरा वो बिछड़ जाना,

कितना तनहा सा वो सफ़र देखा।

छोड़कर तुझको जब हुए रुखसत,

हमने कई बार पलटकर देखा।

काश तू फिर कहीं पे मिल जाए,

हर गली हमने ढूँढकर देखा।

ख्वाब में भी कभी तो तू आये,

हमने नींदों में जागकर देखा।

होके तनहा सदा न देता हो,

आहटों पे भी गौर कर देखा।

ऊषा पाण्डेय.

अप्रकाशित व मौलिक

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Comment

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Comment by Usha Pandey on December 24, 2014 at 11:16am

आदरणीय मेरे सभी गुरुजनों मेरी रचना"इश्क की हद से....." पर आप सब ने मुझे मेरी जो भी कमियां बताई

उसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूँ और भविष्य में मैं इन्हें सुधारने का प्रयत्न करुँगी और ये आप सब से मैं ये

गुज़ारिश भी करुँगी की इसी तरह आगे भी मेरा मार्गदर्शन कीजियेगा


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:44am

आदरणीया उषा जी , रचना के प्रयास के लिये बधाई ! बहुत सार्थक चर्चायें हुई हैं , खयाल कीजियेगा ।

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:41pm

कोशिश को सलाम करता हूँ 

गज़ल तेरी तेरे नाम करता हूँ

रदीफ़ काफिए से बावस्ता नहीं 

मैं गुनाह खुले-आम करता हूँ 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:19pm
भाव अच्छे लगे ....... शिज्जु "शकूर" भाई ठीक कह रहे हैं
Comment by भुवन निस्तेज on December 22, 2014 at 3:52pm

रचना बहुत अच्छी है, बधाई साथ ही आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी की बातों का संज्ञान लेंगी तो उचित होगा..

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:15pm

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।आदरणीया उषा जी सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें !


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 11:21am
आदरणीया उषा जी आपकी रचना ग़ज़ल होते होते रह गयी

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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 10:17am

इश्क की हद से, गुज़र कर देखा, 2122-2122-22

जीते जी हमने तो, मरकर देखा। 2122-2122-22 (मात्रा गिराने के पूरी छूट लेने पर)

राह में तेरा वो, बिछड़ जाना, 2122-2122-22

यूं ख़ुशी से भी, बिछड़कर देखा। 2122-2122-22 (बहर अनुसार संशोधन ) 

इसके बाद बहर विस्तार पाती नज़र आती है - 

आदरणीय उषा जी अगर ये ग़ज़ल होती तो मतले के अनुसार शेष अशआर कुछ यूं भी कहे जा सकते है-

छोड़ के तुझको हम, रूखसत तो हुए,................... छोड़ के हम जो हुए रुखसत यूं 

बढ़ते क़दमों ने कई बार, पलट कर देखा।............. और कदमों ने पलटकर देखा 

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में, ...... काश मिल जाए कहीं राहों में 

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।......  राह में यूं ही निकलकर देखा 

खाब में ही कभी, इक रोज़ कभी तू आये..............  ख़ाब में यूं ही कभी आए तू 

खुली आँखों से ही, नींदों में उतर कर देखा।........... नींद में ऐसे उतरकर देखा 

पुकारता न हो, तनहा मुझको,......................... आज फिर से वो सदा आई है 

कब्र से जाग कर, कई बार उठ कर देखा।..........  कब्र सेआज निकलकर  देखा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 10:51pm
काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,
बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।
आकर्षक प्रस्तुति, बधाई , सादर।

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