For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क की हद से, गुज़र कर देखा...

इश्क की हद से गुज़र कर देखा,

जीते जी हमने तो मर कर देखा।

राह में तेरा वो बिछड़ जाना,

कितना तनहा सा वो सफ़र देखा।

छोड़कर तुझको जब हुए रुखसत,

हमने कई बार पलटकर देखा।

काश तू फिर कहीं पे मिल जाए,

हर गली हमने ढूँढकर देखा।

ख्वाब में भी कभी तो तू आये,

हमने नींदों में जागकर देखा।

होके तनहा सदा न देता हो,

आहटों पे भी गौर कर देखा।

ऊषा पाण्डेय.

अप्रकाशित व मौलिक

Views: 549

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Usha Pandey on December 24, 2014 at 11:16am

आदरणीय मेरे सभी गुरुजनों मेरी रचना"इश्क की हद से....." पर आप सब ने मुझे मेरी जो भी कमियां बताई

उसके लिए मैं आप सबकी आभारी हूँ और भविष्य में मैं इन्हें सुधारने का प्रयत्न करुँगी और ये आप सब से मैं ये

गुज़ारिश भी करुँगी की इसी तरह आगे भी मेरा मार्गदर्शन कीजियेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:44am

आदरणीया उषा जी , रचना के प्रयास के लिये बधाई ! बहुत सार्थक चर्चायें हुई हैं , खयाल कीजियेगा ।

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:41pm

कोशिश को सलाम करता हूँ 

गज़ल तेरी तेरे नाम करता हूँ

रदीफ़ काफिए से बावस्ता नहीं 

मैं गुनाह खुले-आम करता हूँ 

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 22, 2014 at 5:19pm
भाव अच्छे लगे ....... शिज्जु "शकूर" भाई ठीक कह रहे हैं
Comment by भुवन निस्तेज on December 22, 2014 at 3:52pm

रचना बहुत अच्छी है, बधाई साथ ही आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी की बातों का संज्ञान लेंगी तो उचित होगा..

Comment by Hari Prakash Dubey on December 22, 2014 at 1:15pm

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।आदरणीया उषा जी सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकार करें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 11:21am
आदरणीया उषा जी आपकी रचना ग़ज़ल होते होते रह गयी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 10:17am

इश्क की हद से, गुज़र कर देखा, 2122-2122-22

जीते जी हमने तो, मरकर देखा। 2122-2122-22 (मात्रा गिराने के पूरी छूट लेने पर)

राह में तेरा वो, बिछड़ जाना, 2122-2122-22

यूं ख़ुशी से भी, बिछड़कर देखा। 2122-2122-22 (बहर अनुसार संशोधन ) 

इसके बाद बहर विस्तार पाती नज़र आती है - 

आदरणीय उषा जी अगर ये ग़ज़ल होती तो मतले के अनुसार शेष अशआर कुछ यूं भी कहे जा सकते है-

छोड़ के तुझको हम, रूखसत तो हुए,................... छोड़ के हम जो हुए रुखसत यूं 

बढ़ते क़दमों ने कई बार, पलट कर देखा।............. और कदमों ने पलटकर देखा 

काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में, ...... काश मिल जाए कहीं राहों में 

बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।......  राह में यूं ही निकलकर देखा 

खाब में ही कभी, इक रोज़ कभी तू आये..............  ख़ाब में यूं ही कभी आए तू 

खुली आँखों से ही, नींदों में उतर कर देखा।........... नींद में ऐसे उतरकर देखा 

पुकारता न हो, तनहा मुझको,......................... आज फिर से वो सदा आई है 

कब्र से जाग कर, कई बार उठ कर देखा।..........  कब्र सेआज निकलकर  देखा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 10:51pm
काश तू फिर कभी मिल जाए, किन्ही राहों में,
बस यही सोच कर, हर राह पर चल कर देखा।
आकर्षक प्रस्तुति, बधाई , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ग़ज़ल आ गया है वक्त अब सबको बदलना चाहिये। मेहनत से जिन्दगी में रंग भरना चाहिये। -मेहनतकश की नहीं…"
23 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"अभी तो तात्कालिक सरल हल यही है कि इसी ग़ज़ल के किसी भी अन्य शेर की द्वितीय पंक्ति को गिरह के शेर…"
36 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. तिलकराज सर, मैंने ग़ज़ल की बारीकियां इसी मंच से और आप की कक्षा से ही सीखीं हैं। बहुत विनम्रता के…"
3 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"परम आदरणीय सौरभ पांडे जी व गिरिराज भंडारी जी आप लोगों का मार्गदर्शन मिलता रहे इसी आशा के…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। 'मिलना' को लेकर मेरे मन में भी प्रश्न था, आपके…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"2122 2122 2122 212 दोस्तों के वास्ते घर से निकलना चाहिए सिलसिला यूँ ही मुलाक़ातों का चलना चाहिए…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत बहुत आभार आपका ,ये प्रश्न मेरे मन में भी थे  सादर "
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इस बार के तरही मिसरे को लेकर एम प्रश्न यह आया कि ग़ज़ल के मत्ले को देखें तो क़ाफ़िया…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति औल स्ने के लिए आभार।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। 6 शेर के लिए आपका सुझाव अच्छा…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन।गजल आपको अच्छी लगी, लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"2122 2122 2122 212 **** रात से मिलने को  दिन  तो यार ढलना चाहिए खुशनुमा हो चाँद को फिर से…"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service